Wednesday, April 21, 2010

महाशक्तियों की संधि

चेकेस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा और रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के बीच परमाणु हथियारों में कटौती के समझौते में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसे हम ऐतिहासिक कह सकें। बस कहने भर को अमेरिका और रूस अपने परमाणु जखीरों में तीस फीसदी कटौती करेंगे। लेकिन दोनों देशों के पास दुनिया का ९५ प्रतिशत परमाणु भंडार हैं। अगले सात सालों में उनके पास २२०० के बजाय १५५० परमाणु हथियार होंगे, लेकिन इससे दुनिया को क्या फर्क पड़ेगा? दुनिया को खत्म करने के लिए महज चंद परमाणु बम ही काफी हैं। भविष्य में यह संधि निस्त्रीकरण में क्या महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगे? दरअसल ओबामा एक ऐसे विश्व की परिकल्पना करने की कोशिश कर रहे हैं जो परमाणु हथियार मुक्त हो। वाकई उनकी यह सोच अच्छी है। लेकिन इसको अमली जामा भी पहनाया जा सकेगा, मुमकिन नहीं लगता।
अमेरिका और रूस अपने पुराने और कम असर रखने वाले परमाणु हथियारों में एक तिहाई कटौती कर दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह इस मुद्दे पर कितने गंभीर हैं। मानो वही दुनिया के सच्चे हितैषी हैं। ओबामा उम्मीद कर रहे हैं ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देश इससे प्रेरणा लेकर अपना कार्यक्रम समाप्त कर देगे। जो उनकी भूल है। दो सबसे बड़े परमाणु हथियार संपन्न देश परमाणु हथियारों की संख्या में कटौती को ऐतिहासिक बताकर महज दुनिया को गुमराह कर रहे हैं। आज की तारीख में दुनिया भर में २३ हजार से ज्यादा परमाणु बम हैं।शीत युद्ध के बाद से अंतरराष्ट्रीये स्तर पर कई बदलाव आये। आज दुनिया के कई देश परमाणु संपन्न हो चुके हैं। इन सब के अलावा विश्व के सामने आतंकवाद की चुनौती हैं। आतंकवाद के बाद परमाणु प्रसार दूसरी बड़ी चुनौती हैं। ऐसे में आतंकी संगठनों के बीच भी परमाणु हथियार पाने की लालसा हैं। अगर वो इसमें कामयाब होते हैं तो दुनिया को बचाना मुश्किल होगा। इस दिशा में दोनों देशों की ओर से कोई सार्थक पहल नहीं की गयी। इस सब के बावजूद दोनों देशों के प्रमुखों ने इसे एक परमाणु रहित दुनिया की तरफ नया कदम बताया।दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों की संख्या कम करने के मकसद से हुई इस संधि से दुनिया के उन देशों को एक सबक मिलने की उम्मीद है जो विनाश के इन हथियारों के पीछे दौड़ रहे हैं। परमाणु आधारित विध्वंशक हथियारों में कटौती कर विश्व को सुरक्षित जीवन देने की राह में दो महाशक्तियां आगे बढ़ी है। इन सब के बावजूद दुनिया भर में उपलब्ध परमाणु साम्रगी और काले बाजार में उपलब्ध तकनीकी के चलते यह खतरा कम हो जाएगा ऐसा नहीं लगता।

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