Wednesday, April 21, 2010

नीयत पर सवाल

अगर आतंकवाद की बात की जाए तो यह हाल के दिनों में दुनियाभर के लिए चिंता का विषय रहा है। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है। ९/११ की द्घटना को शायद ही अमेरिका कभी भूल पाए। यह वही द्घटना थी जिसने यह साबित कर दिया कि आतंकवादियों का काला साया अमेरिका जैसे देश पर भी है। ९/११ के बाद अमेरिका ने आतंकवादियों के खिलाफ जो अभियान चलाया उसने देखते ही देखते अफगानिस्तान में तालिबानी हुकुमत को नेस्तनाबूत कर दिया गया। आज भी वहां आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई जारी है। जहां अमेरिका का आतंकवाद के खिलाफ यह एक सख्त चेहरा रहा है, वही दूसरी ओर भारत की औद्योगिक राजधानी मुंबई में हुए २९/११ के हमले के प्रमुख अभियुक्त को वह अपने यहां शरण दिये हुए है। उसे बचाने के लिए अमेरिका हरसंभव प्रयास में लगा है। एक ही समस्या दो तरह से नहीं देखी जा सकती। एक तरफ जहां अमेरिका ९/११ के आतंकवादियों के खिलाफ जंग छेड़े हुए है वहीं दूसरी ओर भारत पर हमला करने वाले आतंकियों को शरण देकर अमेरिका अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को प्रोत्साहन देने का काम कर रहा है।
डेविड कोलमैन हेडली को लेकर भारत के प्रति अमेरिकी रुख की हकीकत सामने आ गयी। सरकार भले ही अमेरिका के साथ मधुर संबंधों की दुहाई दे, लेकिन अमेरिका ने पिछले दिनों साफ कर दिया कि उसकी नजर में भारत की औकात क्या है? भारत के गृह मंत्री और गृह सचिव भले ही यह मान रहे हों कि अमेरिकी आतंकवादी डेविड हेडली द्वारा अमेरिका में गुनाह कबूला जाना भारत के लिए झटका नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि हेडली ने ऐसा करके न केवल अपनी जान बचाई है, बल्कि अमेरिका का असली चेहरा उजागर होने से भी बचा लिया। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका की नीयत शुरू से ही साफ नहीं थी।
यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत हुआ। दरअसल हेडली ने गुनाह कबूल कर सरकारी गवाह बनने का प्रयास किया जिसमें वह कामयाब रहा।लेकिन कई सवाल भी हैं, जो अमेरिकी भूमिका को कटद्घरे में खड़ा करते हैं। दरअसल हेडली डबल एजेंट था और ऐसे में अमेरिका को अपनी पोल खुलने का खतरा पैदा हो गया था। अगर हेडली भारत को सौंप दिया जाता, तो यह सच्चाई पूरी दुनिया के सामने आ जाती कि वह लश्कर के लिए काम करने के अलावा अमेरिकी खुफिया एजेंसी का भी एजेंट था। ऐसा होने पर अमेरिका बेनकाब हो जाता। ऐसे में अमेरिका ने हेडली को गवाह बनाकर अपनी इज्जत और उसकी जान दोनों ही बचा ली।अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने डेविड हेडली को शिकागो से अक्टूबर २००९ में गिरफ्तार किया था। खुफिया ऐजेंसी उस पर एक वर्ष से भी ज्यादा समय से नजर रख रही थी। उसके और लश्कर-ए-तैयबा के बीच जारी हुई ई-मेल पहले ही पकड़ी जा चुकी थीं। लेकिन, उसने भारतीय एजेंसियों को इसकी सूचना नहीं दी।ऐसे में अब भारत चाहे जितनी कोशिश कर ले, हेडली को भारत लाकर मुकदमा चलाना एक सपना ही होगा। अमेरिकी कानूनी दांव-पेंच लगाकर हेडली को अप्रत्यक्ष रूप से सहायता कर रही है। हेडली ने शुरुआत में आरोपों से इनकार किया था लेकिन बाद में उन्हें मान लिया जिसके चलते वह सजा ए मौत या भारत, पाकिस्तान, डेनमार्क प्रत्यर्पण से बच गया। भारत के आग्रह पर अमेरिका पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह स्पष्ट नहीं है लेकिन कहीं न कहीं अमेरिका की नियत में खोट जरूर दिख रहा है।

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