Tuesday, June 22, 2010

झुकने को तैयार नहीं ईरान

भले ही अमेरिका के दबाव में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिया हो लेकिन ईरान अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं। ईरान पर बीते नौ जून को चौथे दौर का प्रतिबंध लगाया गया। राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाये गए नए प्रतिबंधों को मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा ये इस्तेमाल किया हुआ रूमाल है जो कूड़ेदान में फेंक दिया जाना चाहिए। वहीं अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने परमाणु मुद्दे पर ईरान के साथ बातचीत के दरवाजे खुले होने की बात कहकर अपनी कमजोरी को उजागर कर दिया। गौरतलब है कि यह वर्ष २००६ के बाद से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नियंत्रित करने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों की चौथी और आखिरी किस्त है। सवाल उठता है कि इसके बाद अमेरिका क्या करेगा?
पांच महीनों की माथापच्ची के बाद आखिरकार ईरान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने विगत नौ जून को बहुप्रतीक्षित चौथे दौर का प्रतिबंध लगाया। संबंधित प्रस्ताव को १२-२ से पारित कर दिया गया। १५ सदस्यों की सुरक्षा परिषद में अमेरिका और बिट्रेन सहित १२ देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट किये जबकि ब्राजील और तुर्की ने इसका विरोध किया। वहीं लेबनान गैर हाजिर रहा। अमेरिका को इस प्रस्ताव को तैयार करने में बिट्रेन और फ्रांस ने भी मदद की। जबकि चीन और रूस पहले प्रतिबंधों का विरोध कर रहे थे लेकिन उन्होंने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आरोप है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है। लेकिन ईरान का दावा है कि उसका यूरेनियम संवर्द्धन कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।
ताजा प्रतिबंधों में ईरान की परमाणु गतिविधियों को अवरुद्ध करने, मालवाहक जहाजों को जब्त करने और तेहरान को युद्ध टैंक और हेलिकॉप्टर के निर्यात पर रोक लगाई गई हैं। प्रस्ताव के मसौदे के मुताबिक ईरान के परमाणु या मिसाइल कार्यक्रम के साथ संबंध होने की स्थिति में विदेशों में कारोबार कर रहे ईरानी बैंकों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। सेंट्रल बैंक सहित ईरान के सभी बैंकों के साथ लेनदेन पर भी कड़ी नजर रखी जाएगी। ईरान के हथियार खरीदने पर लगाए गए प्रतिबंधों को भी विस्तार दिया गया है।सैन्य, व्यापारिक और वित्तीय संबंधों को प्रतिबंधित करने से ईरान की सरकार से ज्यादा वहां की जनता को परेशानी होगी, जिसका असर दीर्द्घकालिक रूप से पड़ेगा। भारत ने इन प्रतिबंधों को यह कहते हुए बेमानी बताया कि इससे शासन की बजाय आम आदमी पर बुरा असर पडे़ेगा। प्रतिबंध लगने के बाद ईरानी बैंकों, नागरिकों और संदिग्ध कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। प्रस्ताव पारित होने के बाद यूएन में अमेरिकी प्रतिनिधि सुसन राइस भले ही यह कह रहे हों कि प्रतिबंध ईरानी नागरिकों के खिलाफ नहीं है बल्कि वहां के शासन की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को लक्ष्य करके लगाए गए हैं। लेकिन इसका सबसे बुरा प्रभाव तो वहां की आम जनता को ही होगा।
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा ईरान के खिलाफ लगाए गए अब तक के सबसे कड़े प्रतिबंध को अंतराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता बताया। लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि तेहरान के लिए राजनयिक विकल्प अब भी खुले हुए हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री ने भी र्ईरान के साथ बातचीत की बात कही। जबकि चीन ने इस प्रतिबंध को ईरान के सामने बातचीत के रास्ते पर वापस लाने के लिए बताया। जबकि संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में तैनात ईरान के राजदूत अली असगर सुल्तानेह ने स्पष्ट कहा है कि ईरान अपना यूरेनियम संवर्द्धन कार्यक्रम बंद नहीं करेगा।
सुरक्षा परिषद द्वारा ईरान के खिलाफ विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम के कारण प्रतिंबध लगाए जाने के बाद उसने विरोधी कदम उठाने की धमकी दी है। अमेरिका, इजराइल, पाकिस्तान जैसे गैरजिम्मेदार देशों के परमाणु हथियारों को स्वीकार कर सकता है, उन्हें संरक्षण दे सकता है। वह ईरान के पीछे पड़कर दुनिया में शांति की संभावनाओं को धूमिल करने में लगा है। इराक के बाद अब अमेरिका ईरान को निशाना बनाकर पश्चिम एशिया में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है। लेकिन जानकारों के मुताबिक ईरान कई मायनों में इराक से बेहतर स्थिति में है। वह अमेरिका की सारी चालों का समझता है। यही वजह है कि ईरान की क्रांति के बाद से अमेरिका और ईरान के बीच कटूता बढ़ती रही है। अमेरिका सहित पश्चिमी देश लगातार ईरान पर दबाव बना रहे हैं। लेकिन ईरान अपने भौगोलिक स्थिति के कारण किसी हाल में झुकने को तैयार नहीं।

निशाने पर नीतीश

बिहार में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। राजनीतिक गतिविधियों का बढ़ना लाजमी है। लेकिन सभी पार्टियों के निशाने पर जनता दल यूनाइटेड के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। हालांकि भाजपा सरकार में शामिल है लेकिन उसे अपनी चिंता अधिक सता रही है। इसका सबसे बड़ा कारण जदयू का बढ़ता वोट प्रतिशत है। भाजपा के साथ रहते हुए नीतीश कुमार ने कुछ ऐसे फैसले लिये हैं, जिन्हें आसानी से भाजपाई पचा नहीं पा रहे हैं। भाजपा को सबसे अधिक परेशानी मुसलमानों के पक्ष में लिये गये फैसलों से हुई है। इन सब से इतर भाजपा की स्थिति दिन पर दिन प्रदेश में खराब होती गई। इतिहास पर नजर डालें तो राजद-कांग्रेस का गंठबंधन भी कुछ इसी तरह का था। राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस लगभग विलीन हो गई और राजद के रहमोकरम पर चलती रही। इस बात का अंदाजा भाजपा के नेताओं को लग गया है। लेकिन आगे क्या होगा इसका आकलन करना गलत होगा। क्योंकि गठबंधन रहेगा या नहीं, नीतीश कुमार या भाजपा क्या फैसला लेती है यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।
अपनी साख जनता के बीच बचाये रखने के लिए भाजपा ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से शंखनाद की जो योजना बनाई उसने जदयू-भाजपा गठबंधन में दरार डालने का काम किया। भाजपा जाने-अनजाने ऐसा कर बैठी जिससे राज्य में उसकी सहयोगी पार्टी को भाजपा के सम्मान में दिया जाने वाला भोज रद्द करना पड़ा। दरअसल, सारा विवाद उस विज्ञापन को लेकर हुआ जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हाथ में हाथ डाले दिखलाया गया। विज्ञापन छपने के बाद से ही सत्तारूढ़ जदयू-भाजपा गठबंधन पर संकट के बादल मंडराने लगे। ऐसे में जब चुनाव सिर पर है नीतीश किसी हालत में नरेन्द्र मोदी या भाजपा के साथ दिखना नहीं चाहते। वहीं भाजपा नीतीश कुमार की छाया से बाहर निकलने की बेचैनी में है। साफ है जो हो रहा है वह विशुद्ध राजनीति है। बिहार में अल्पसंख्यकों का वोट काफी महत्व रखता है। नीतीश हर हाल में इस वोट बैंक को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते। नीतीश किसी भी प्रकार से नरेन्द्र मोदी या भाजपा के साथ नहीं दिखना चाहते हैं। भाजपा इस बात को भलीभांति समझती है कि वह अल्पसंख्यक के वोट पाने में कामयाब नहीं हो सकती। ऐसे में बिहार में पार्टी ने हिन्दू हृदय सम्राट कहे जाने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री को खड़ा कर अपने पुराने एजेंडे पर लौटने का संकेत देने की कोशिश की है। स्थानीय अखबारों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का महिमामंडन और मोदी के साथ उन्हें दिखाने वाले विज्ञापनों से आग बबूला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कानूनी कार्रवाई तक की धमकी दे डाली। विज्ञापन में नरेन्द्र मोदी का जमकर गुणगान किया गया था। विज्ञापन के माध्यम से इस बात पर जोर दिया गया कि गुजरात की तर्ज पर प्रदेश में खूब विकास हुआ। कुल मिलाकर बिहार के चुनाव में स्थानीय मुद्दों को भूला कर भाजपा ने नरेन्द्र मोदी की छवि को भुनाने की कोशिश की। जानकारों के मुताबिक इसके पीछे भाजपा की सोची-समझी चाल थी। बिहार के विकास का सारा श्रेय कहीं नीतीश कुमार और जदयू को न जाए इसलिए मोदी को सामने लाकर भाजपा ने अपनी छवि को भुनाने का काम किया। साथ ही उसने नीतीश कुमार के विकास पुरुष की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया। अब तक राज्य में नीतीश के सुझावों पर चलने वाली भाजपा ने इस बार दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है।
नीतीश कुमार की नाराजगी की दूसरी वजह भी है जो बिहार के स्वाभिमान से जुड़ी है। नरेन्द्र मोदी ने इन विज्ञापनों के जरिए यह बताने का प्रयास किया कि अगर गुजरात नहीं होता तो बिहार की जनता पूरी तरह बाढ़ में डूब जाती। नरेन्द्र मोदी के इस विज्ञापन से भारतीय परंपरा का अपमान हुआ है। विज्ञापन में कहा गया कि संकट की द्घड़ी में गुजरात हमेशा बिहार के साथ खड़ा रहा। २००८ में आई बाढ़ के दौरान भी गुजरात ने बिहार को सर्वाधिक मदद की। अपने विज्ञापन के माध्यम से भाजपा ने बिहार की नौ करोड़ जनता को यह बताने की कोशिश की कि बिहार को भाजपा शासित राज्य गुजरात ने मदद देकर बहुत बड़ा उपकार किया। अब बिहार के लोगों को अपना कर्ज उतारने की बारी है। यानी बिहार की जनता गुजरात के इस उपकार के बदले प्रदेश में भाजपा को वोट दे। शायद मोदी यह भूल गए कि गुजरात की खुशहाली में बिहारी मजदूरों का भी योगदान है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा सहयोगी दल भाजपा के प्रमुख नेता एवं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर खुला और तीखा प्रहार करने के बाद इस बात के साफ संकेत नजर आ रहे हैं कि दोनों दलों में दरार पड़ चुकी है और इस साल अक्टूबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां अलग-अलग रास्ते पर चल सकती हैं।
जानकारों के मुताबिक अगर नीतीश कुमार भाजपा से नाता तोड़ते हैं तो उन्हें इसका दोहरा लाभ मिल सकता है। पहला बिहार के स्वाभिमान के नाम पर नौ करोड़ बिहारियों के हीरो बन सकते हैं। दूसरा भाजपा से नाता टूटने पर अब तक भटक रहे अल्पसंख्यकों का वोट उनकी झोली में आसानी से गिर सकता है। इस बीच जदयू के अल्पसंख्यक नेता भी बिहार के मुख्यमंत्री पर भाजपा का साथ छोड़ने और राज्य विधानसभा का आगामी चुनाव अकेले लड़ने का दबाव बना रहे हैं। मोदी की छवि सांप्रदायिक है जबकि नीतीश की धर्मनिरपेक्ष। जदयू नेता मोनाजिर हसन का कहना है कि उन्होंने सुनिश्चित साजिश के तहत पूरे राज्य में मोदी के इश्तेहार छपवाए हैं। यह नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने की साजिश है। विज्ञापन में मोदी और नीतीश को साथ-साथ दिखाकर उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि को तार-तार करने की कोशिश की गई है।