Tuesday, March 9, 2010

दो महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा

पिछले कुछ अरसे से अमेरिका की स्थिति में जहां गिरावट देखने को मिली, चीन उसके मुकाबले में आगे निकलता दिखाई पड़ा। आर्थिक मंदी और जलवायु परिवर्र्तन पर अमेरिका को काफी फजीहत झेलनी पड़ी। ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों को धता बताकर परमाणु संवर्धन करने में सफलता प्राप्त कर ली। अमेरिका इस से काफी द्घबराया हुआ है। ऐसे में ईरान पर और कडे़ प्रतिबंध लगाने के लिए चीन की मंजूरी जरूरी है। यही कारण है कभी दलाई लामा से मिलने से इंकार करने वाला ओबामा प्रशासन उनसे मुलाकात कर चीन पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है
दुनियाभर की दो महाशक्तियों चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा को देखा जा सकता है। अमेरिका चीन पर दबाव बनाना चाहता है, तो चीन भी इस मामले में पीछे नहीं है। राष्ट्रपति ओबामा के कोपनहेगन की जलवायु शिखर बैठक के दौरान हुए अपमान और ईरान के खिलाफ कड़े प्रतिबंधों के प्रस्ताव पर चीन की उल्टी राय से भी अमेरिका द्घबराया हुआ है। जलवायु परिवर्तन पर अंतिम समय में चीन का कटौती के प्रस्ताव से इंकार कर देना भी अमेरिका को रास नहीं आया। अमेरिका ने चीन पर दबाव बनाने के लिए पिछले दिनों ताईवान को अरबों डॉलर के आधुनिक श्रेणी के हथियार बेचे। गूगल सेंसरशिप मामले में दोनों देशों के मतभेद खुलकर सामने आ चुके हैं। पश्चिमी देश विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं, ऐसे में चीन पर दबाव बनाना जरूरी हो गया। समझा जाता है कि इसी रणनीति के तहत अमेरिका ने चीन के लाख विरोधों के बीच तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा से मुलाकात की।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने १८ फरवरी को तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा से मुलाकात की। नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त इन नेताओं की मुलाकात वैसे तो अनौपचारिक थी, लेकिन इसे लेकर चीन ने काफी आपत्ति जताई। इस बैठक में जो हुआ या उससे भी बढ़कर जो नहीं हुआ, उसे आशाजनक तो कतई नहीं कहा जा सकता। दोनों नेताओं की मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस के मैप रूप में हुई। मैप ऑफिस में दलाई लामा से मुलाकात को ओबामा प्रशासन ने निजी करार दिया। मीडिया को यहां आने से रोक दिया गया। मुलाकात कक्ष में कैमरे के इस्तेमाल की इजाजत नहीं थी। दोनों नेताओं की मुलाकात भले ही मैप रूम में हुई पर इसकी गरज चीन में सुनाई पड़ी। चीन सरकार ने चीन में अमेरिकी राजदूत को तलब किया और ओबामा-दलाई लामा मुलाकात को सरासर 'हस्तक्षेप' की संज्ञा दी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा चीन की जनता की राष्ट्रीय भावनाओं को इस मुलाकात से आद्घात पहुंचा इस बीच व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव रॉबर्ट गिब्स ने दोनों नेताओं के बीच हुई इस वार्ता के बाद कहा कि राष्ट्रपति ओबामा ने तिब्बत की अनूठी धार्मिक, सांस्कूतिक और भाषायी पहचान को बचाए रखने तथा चीन में तिब्बतियों के मानवाधिकार की रक्षा के प्रति पूर्र्ण सर्मथन व्यक्त किया। गौरतलब है १९९१ से अमेरिका का प्रत्येक राष्ट्रपति चीन के विरोधों के बावजूद दलाई लामा से बातचीत करता आया है और इस मुलाकात को उसी परंपरा की एक कड़ी माना जा रहा है।
राष्ट्रपति ओबामा बैठक के बाद दलाई लामा के साथ मीडिया के सामने आने का न तो साहस जुटा सके और न ही तिब्बत की स्वायत्तता का कोई जिक्र किया।
इस मुलाकात की एक और वजह हैं। राष्ट्रपति ओबामा को अपनी सत्ता के दूसरे साल में कैनेडी परिवार और डेमोक्रेटिक पार्टी के गढ़ समझे जाने वाले मैसाच्यूसेट्स की सीट पर करारी हार के बाद से अपनी भूलों का अहसास होने लगा और उसे चीन को सीना दिखाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसी सिलसिले में चीन के टायरों और इस्पात की ट्यूबों पर शुल्क जड़ना, चीन के गूगल इमेल खातों में सेंध लगाए जाने की शिकायतों की मांग करना, ताईवान को रक्षात्मक हथियार बेचने का फैसला करना और आखिरी चाल के तौर पर दलाई लामा से मिलना शामिल है। दरअसल, सांकेतिक कदमों का यह दौर अमेरिका और चीन के आपसी संबंधों में आ रही खनक से ज्यादा कुछ नहीं। आर्थिक मंदी की विभीषिका झेल चुका अमेरिका दोनों देशों के बीच टकराव का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा। मुश्किल यह है कि तिब्बत जैसी समस्याओं का समाधान केवल रचनात्मक आलोचनाओं से नहीं निकल सकता।

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