Friday, February 12, 2010

करीब आते भारत बांग्लादेश

खालिदा जिया के समय भारत-बांग्लादेश रिश्ते में जो ठंड आ चुकी थी वो शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद पिद्घलने लगी। दरअसल, खालिदा जिया की सरकार पर कट्टरपंथी गुटों का वर्चस्व था जो कभी नहीं चाहते थे कि भारत से संबंध सुधरें। लेकिन अवामी लीग
के आते ही रिश्तों की खटास मिठास में बदलने लगी। गतिरोध और विरोध का सिलसिला टूटा। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की तीन दिवसीय यात्रा से भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में एक नये अध्याय की शुरुआत दिखाई पड़ी। भारत ने भी रेड कारपेट से जिस तरह शेख हसीना का स्वागत किया है उससे यह बात स्पष्ट होती है कि भारत का भरोसा बांग्लादेश पर बढ़ा है। बांग्लादेश में हुई सेना बगावत के बाद यह बात स्पष्ट हो चुकी थी कि अगर ऐसे हालात भविष्य में बने रहे तो बांग्लादेश पर राजनीतिक संकट गहरा सकता है। इसको अवामी लीग ने अच्छी तरह महसूस किया। यही वजह रही कि शेख हसीना ने पदभार संभालते ही भारत को यह भरोसा दिलाया कि बांग्लादेश को आतंकवादियों की पनाहगाह नहीं बनने दिया जाएगा। भारत आगमन पर उन्होंने भारत को यह यकीन दिलाया कि भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने में वह अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देंगी। पिछले साल कई उल्फा नेताओं को गिरफ्तार कर उन्होंने यह साबित भी किया।
भारत यात्रा पर आयी शेख हसीना ने जिन महत्वपूर्ण करारों पर समझौते किए। उनमे आपराधिक मामलों में कानूनी सहायता, अंतरराष्ट्रीय और आतंकवाद संगठित अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी रोकने को लेकर हुआ। तीसरा करार कैदियों की अदला बदली के बारे में हुआ। इस करार ने भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि की भूमिका तैयार कर दी है। दूसरी तरफ भारत ने बांग्लादेश को एक अरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता देने की द्घोषणा की है जो किसी भी देश को एक बार में दी जाने वाली सबसे बड़ी कर्ज-राशि है। भारत ने बांग्लादेश को अपने यहां से नेपाल और भूटान तक रेल और सड़क संपर्क की सुविधा दी है। इन उपायों से दोनों मुल्कों के बीच आवाजाही के नए रास्ते खुलेंगे। भारत ने बांग्लादेश से अनेक नई वस्तुओं के शुल्क मुक्त आयात के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आश्वासन दिया कि भविष्य में इस नकारात्मक सूची को छोटा किया जा सकता है। व्यापारिक मोर्चे पर यह भारत के लिए नई संभावनाएं खोल सकता है। भारत आने वाले समय में चटगांव के बंदरगाह का उपयोग कर सकेगा, जिससे समुद्री रास्तों से व्यापार बढ़ाने में आसानी होगी। लेकिन नदियों के पानी के बंटवारे और तीन बीद्घा गलियारे के सीमांकन जैसे कुछ पुराने मुद्दों पर मतभेद जस के तस बना रहा।
बेगम शेख हसीना को राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया। इस मौके पर शेख हसीना भावुक दिखाई पड़ीं। उन्होंने इंदिरा गांधी को याद करते हुए उन्हें अपनी मां जैसा कहा। इंदिरा गांधी से अपनी मुलाकातों को याद कर वह भावुक हो उठीं। उन्होंने अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या का जिक्र करते हुए कहा उस कठिन समय में श्रीमती गांधी ने उन्हें पनाह दी। वह १९७६ से १९८१ तक दिल्ली में रहीं। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने भारत के प्रति जैसी कृतज्ञता दिखाई, वो दोतरफा रिश्तों के बीच बेहतर संभावना का परिचायक है। यही कारण है कि इन दोनों देशों के बीच हुए इन समझौतों को जानकार रूटीन कूटनीति से आगे आपसी सद्भाव और शांति के क्षेत्र में एक बड़ी पहल मान रहे हैं। भारत दौरे पर आयी शेख हसीना ने कहा कि वो भारत के साथ बेहतर रिश्ते चाहती हैं। ताकि दक्षिण एशिया में स्थायी रूप से शांति हो सके। उन्होंने कहा भारत से हमारा रिश्ता पुराना है। मुक्ति आंदोलन में भारत ने हमारे लोगों की न केवल मदद की बल्कि हमारे संद्घर्ष में भी साथ दिया। उन्होंने कहा कि हम दोस्ती और सहयोग चाहते हैं ताकि अपने सबसे बड़े दुश्मन गरीबी का सामना कर सकें। हम गरीबी मुक्त, शांतिपूर्ण दक्षिण एशिया की चाहत रखते हैं। मेरी यात्रा का मुख्य उद्देश्य लोगों की भलाई है। गौरतलब है कि बांग्लादेश के निर्माण के मात्र चार वर्ष बाद ही १९७५ में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गयी थी। तत्कालीन सैन्य विद्रोह के कारण शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। निर्वासित जीवन उन्होंने भारत में ही बिताया। अवामी लीग दुबारा १९९६ में सत्ता में आयी लेकिन यह सरकार अल्प मत की थी। इस बार जब बांग्लादेश की अवाम ने अवामी लीग को पूर्ण बहुमत दिया तो शेख हसीना भ्ाी भारत के साथ अपने पुराने संबंधों को सुधारने के प्रयास में लग गयीं। भारत के पूर्वोत्तर में चल रहे आतंकवाद को खत्म करने की दिशा में बांग्लादेश नए संकेत पहले ही दे चुका है। जानकारों की मानें तो दक्षिण एशिया में शांति के लिए भारत और बांग्लादेश के अच्छे रिश्ते बड़ा रोल निभा सकते हैं।

राज को राज

श्रीलंका में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम
चौंकाने वाला नहीं रहा। पहले से यह माना जा रहा था कि इस चुनाव में महिंदा राजपक्षे जीतेंगे और हुआ भी कुछ ऐसा ही। राष्ट्रपति पद के लिए करीब २२ उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे लेकिन मुख्य मुकाबला राजपक्षे और जनरल फोनसेका के बीच ही था। वैसे चुनाव का मुख्य मुद्दा लिट्टे के साथ चल रहे २६ साल पुराने गृहयुद्ध को समाप्त करने में निर्णायक भूमिका निभाने का ही रहा। ऐसे में आम लोगों की अपेक्षाएं राजपक्षे से ज्यादा थीं। यही कारण उनकी जीत का भी बना। गृहयुद्ध की विभीषिका झेल चुके श्रीलंका में स्थायी शांति के लिए लोगों ने राजपक्षे के पक्ष में मतदान किया। लेकिन इन सब के बीच नई सरकार के सामने अभी कई चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। मसलन सैन्यवाद, मानवाधिकारों का उल्लंद्घन, प्रेस की आजादी, अंधराष्ट्रवाद तथा तमिल अल्पसंख्यकों के अधिकार।जिस पैमाने पर राजपक्षे को जीत हासिल हासिल हुई है उससे एक बात स्पष्ट है कि अब श्रीलंका में लंबे समय तक राजनीतिक स्थायित्व बना रहेगा। चुनावों में मिली जीत से जानकारों का मानना है कि वहां के हालात में और सुधार आयेगा। ऐसे में राजपक्षे को श्रीलंका में व्याप्त भय के माहौल को खत्म करने के लिए एक अवसर प्राप्त हो गया है। लंबे समय तक चली तमिल और सिंहली खूनी जंग ने श्रीलंका की राजनीति और आर्थिक स्थिति की चूलें हिला दी थीं। देश की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए राजपक्षे को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि श्रीलंका अपने हिंसात्मक इतिहास से उबरने में सफल रहेगा। साथ ही ढाई लाख तमिलों को पुनर्वास कैंपों से बाहर निकालकर वापस मुख्यधारा में लाने में सक्षम होगा।
इस बीच श्रीलंका के रक्षा सचिव का कहना है कि सरकार राष्ट्रपति चुनाव में हार चुके जनरल सनथ फोनसेका के खिलाफ कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। वैसे श्रीलंका में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की चुनाव परिणामों के बाद हत्या का पुराना इतिहास रहा है। इसे देखते हुए सेना कमांडर फोनसेका ने अपनी जान के खतरे की आशंका जताई है। सैनिकों से द्घिरे एक होटल में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए जनरल फोनसेना ने कहा कि चुनाव में धांधली हुई है और सरकार उन्हें जान से मरवाने की कोशिश कर रही है। इस बीच सरकार का कहना है कि जनरल होटल छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन उन्हें उन आरोपों के नतीजों का सामना करना होगा जो उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लगाए थे। चुनाव में जनरल को पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग समेत कुछ विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त था।
दरअसल राष्ट्रपति राजपक्षे को जनरल फोनसेका की तरफ से दी गई चुनौती कोई सामान्य चुनौती नहीं थी। यह सेना के शीर्ष नेतृत्व का नागरिकों के शीर्ष नेतृत्व के साथ टकराव था। अगर यह टकराव आगे भी बना रहा तो श्रीलंका की शांति को नया खतरा हो सकता है। लेकिन जानकारों के मुताबिक यह स्थिति किसी सैन्य बगावत की तरफ जाएगी ऐसा नहीं लगता है। लेकिन राजपक्षे की छवि को देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि टकराव का खतरा अभी टला नहीं है। इसलिए सवाल महज चुनाव जीतने का ही नहीं है। सवाल लोकतंत्र का है, श्रीलंका के अस्तित्व और आगे की रणनीति, कूटनीति का है। गृहयुद्ध खत्म होने के बाद भी श्रीलंका सामान्य नहीं हुआ है। असली चुनौतियां अभी बाकी हैं। ऐसे में भारत सहित पूरी दुनिया की निगाहें श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति राजपक्षे पर लगी हैं।जहां तक भारत-श्रीलंका के संबंधों का सवाल है तो कुल मिलाकर अभी तक यह संबंध संतोषप्रद ही रहा है। लेकिन लिट्टे के खात्मे के लिए जिस प्रकार श्रीलंका ने चीन और पाकिस्तान की मदद ली वह भारत के हित में नहीं जाता। लिट्टे के खिलाफ अभियान के दौरान चीन और पाकिस्तान की सैन्य भूमिका श्रीलंका में बढ़ी है। जो भारत के लिए चिंता का विषय है। श्रीलंका में होने वाले परिवर्तनों का भारत पर भी असर पड़ता है। गृहयुद्ध के कारण चरमराई श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए व्यापार के मामले में भारत को श्रीलंका के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने होंगे। श्रीलंका अभी भी भारत पर काफी कुछ निर्भर करता है। ऐसे में उसे आर्थिक और राजनैतिक पहल के माध्यम से प्रभावित किया जा सकता है।