Wednesday, April 21, 2010

ब्रिटेन में चुनावी बिगुल

ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स की सभी ६५० सीटों के लिए ६ मई को आम चुनाव होगा। हाल में हुए एक सर्वेक्षण से उत्साहित सत्तारूढ़ लेबर पार्टी जहां अपनी लगातार चौथी जीत के लिए बेकरार हैं, वहीं कंजरवेटिव पार्टी १३ साल बाद अपनी खोयी राजनैतिक जमीन फिर से वापस पाने की कोशिश करेगी। इन दो पार्टियों के अलावा मैदान में तीसरी पार्टी है लिबरल डेमोक्रेट, यह पार्टी दोनों प्रमुख दलों से फायदा उठाने की कोशिश करेगी। त्रिशंकु संसद की स्थिति में सौदेबाजी करने के लिए लिबरल डेमोक्रेट ज्यादा राजनीतिक वजन बढ़ाने की कोशिश करेगी। हाल ही में हुए जनमत सर्वेक्षण में ब्रिटेन में होने वाले चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने और संसद में त्रिशंकु स्थिति बनने की संभावना व्यक्त की गई है। अगर ऐसा हुआ तो यह वर्ष १९७० के मध्य के बाद से ब्रिटेन में पहली बार होगा। ब्रिटेन के समाचार पत्रों मेल टुडे और पीपुल्स में प्रकाशित जनमत सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार मुख्य विपक्षी दल कंजरवेटिव पार्टी प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन की लेबर पार्टी के मुकाबले नौ प्रतिशत अंक लेकर आगे है। एक अन्य सर्वेक्षण में भी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में त्रिशंकु स्थिति के संकेत मिले हैं। समीक्षकों का मानना है कि कंजरवेटिव पार्टी को नौ अंकों की बढ़त मिलना यह दर्शाता है कि उसे बहुमत मिल सकता है। बीपीआई एक्स पोल में डेविड केमरुन की कंजरवेटिव पार्टी को ३९ प्रतिशत, लेबर पार्टी को ३० प्रतिशत और लिबरल डेमोक्रेट्स को १८ प्रतिशत अंक मिले हैं।
इराक युद्ध और आतंक विरोधी कानून के बावजूद ब्रिटिश मुसलमानों का झुकाव लेबर पार्टी की ओर बना हुआ है। सर्वे के मुताबिक लगभग ५७ प्रतिशत मुस्लिम सत्तारूढ़ लेबर पार्टी के पक्ष में हैं। हालाकि ५३ प्रतिशत मुसलमानों का मानना है कि पिछले दशक में धार्मिक आजादी पर कई तरह की रोक लगी हैं। वहीं ४० प्रतिशत ईसाई प्रमुख विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी का समर्थन कर रहे हैं। इस बीच प्रमुख पार्टियां एशियाई लोगों के मत को अपने पक्ष में करने के लिए योजना बनाने में जुट गयी हैं। आगामी संसदीय चुनाव को देखते हुए कई सांसद संसद में अश्वेत और एशियाई मूल के सदस्यों की संख्या को बढ़ाने के लिए अभियान चला रहे हैं। ब्रिटेन की संसद के कुल सदस्यों में से केवल १५ अश्वेत हैं, जबकि देश की सामान्य आबादी के अनुपात के अनुसार अल्पसंख्यकों की जनसंख्या के हिसाब से ५८ सदस्य अश्वेत या एशियाई मूल के होने चाहिएं। लेबर पार्टी का मानना है कि प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन ने न सिर्फ आर्थिक मंदी से ब्रिटेन को निकाला है, बल्कि विश्व का भी प्रतिनिधित्व किया। लेकिन इस सब के बावजूद ब्राउन को अपनी ही पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ब्रिटेन की गार्डन ब्राउन सरकार के दो पूर्व मंत्रियों ने मांग की है कि चुनावों में ब्राउन लेबर पार्टी का नेतृत्व करें या नहीं इस बारे में गुप्त मतदान होना चाहिए। उधर प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि पूरा मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन के साथ है। ज्याफ हून और पैट्रिशिया हेविट ने संसद को लिखे पत्र में कहा है कि नेतृत्व के मुद्दे पर जारी अनिश्चितता पार्टी को चुनाव में अपना पक्ष मजबूती से रखने से रोक रही है और इसका फैसला सिर्फ गुप्त मतदान से हो सकता है। लेबर पार्टी के चेयरमैन टोनी लायड ने कहा है कि नेतृत्व को चुनौती कोई संकट नहीं है और यह चुनौती जल्द दम तोड़ देगी। ब्राउन के आलोचकों का कहना है कि उनकी छवि को आर्थिक संकट और अफगानिस्तान में ब्रिटिश सैनिकों की मौतों के चलते काफी नुकसान पहुंचा है। ब्रिटेन चुनाव में इन सब से अलग जो नया देखने को मिलेगा, वह रहेगा अमेरिका के चुनाव प्रचार का सफल तरीका। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव का असर साफ देखा जा सकता है। प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की पत्नियां भी चुनावी मैदान में हैं। प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन के सामने हैं प्रमुख विपक्षी पार्टी कंजरवेटिव के डेविड कैमरन। लेकिन इनकी चुनावी कमान सारा ब्राउन और सामंथा कैमरन के हाथों में होगी। सारा ब्राउन अपने पति की टीम में पब्लिक रिलेशन संभालने में अहम भूमिका निभा रही हैं। दूसरी तरफ डेविड कैमरन ने भी चुनावी अभियान में अपनी स्टाइलिश पत्नी सैम को शामिल कर लिया। वैसे सारा और सैम में समानताएं भी हैं और अंतर भी। सैम बहुत ही उच्च, संभ्रांत द्घराने से हैं, जबकि सारा मिडिल क्लास फैमिली से हैं। बहरहाल इन दोनों की बदौलत चुनावी दंगल काफी दिलचस्प होने वाला है।

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