Thursday, September 17, 2009

जापान में बदलाव की बयार

हाल ही में जापान में हुए चुनाव में जनता ने लगातार पचपन वर्ष से सत्ता पर काबिज लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को बाहर का रास्ता दिखा कर प्रमुख विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान को बागडोर सौंपी है जिसका नेतृत्व हातोयामा कर रहे हैं। हातोयामा को वामपंथी-मध्यमार्गी समझा जाता है। लेकिन उनका आगे का सफर इतना आसान भी नहीं होगा। आर्थिक मोर्चे पर संकट का सामना कर रहे जापान को तूफान से बचाकर ले जाना नए प्रआँाानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी

जापान में संपन्न हुए आम चुनाव में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान यानी डीपीजे ने ३०८ सीटों पर जीत दर्ज कराई है। इस चुनाव में जनता ने लगभग पांच दशक तक सत्ता में बनी रहने वाली लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को बाहर का रास्ता दिखाया है। अपनी जीत पर डीपीजे के नेता और प्रधानमंत्री पद के दावेदार हातोयामा ने जनता को धन्यवाद देते हुए इसे 'सत्ता में बदलाव के लिए मतदान' करार दिया। इस चुनाव में सत्तारूढ़ दल के कई बड़े नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि चुनाव से पहले एलडीपी ने जनता से वायदा किया था कि वह खर्चों पर अंकुश लगाकर और द्घरेलू आय को बढ़ाकर जापान को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनाएंगे। परन्तु इस द्घोषणा का जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

हातोयामा की जीत और सत्ता परिवर्तन का असर टोक्यो के शेयर बाजारों पर भी देखने को मिला। शेयर बाजार भारी बढ़त के साथ खुले। १९५५ से अब तक एक दक्षिणपंथी अनुदार व्यापारिक वर्ग की हितैषी पार्टी पर लगातार भरोसा करते आये जापानियों ने ऐतिहासिक फैसला करते हुए देश की सत्ता वामपंथियों- मध्यमार्गियों के हाथों में सौंपने का निर्णय किया। जापानियों ने आर्थिक संकट के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान को पहली बार सत्ता सौंपने का निर्णय लिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार जापान इतने गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में युकिनो हातोयामा की डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान ठोस विकल्प के रूप में वहां के मतदाताओं को दिखी, जिसने जनकल्याण कार्यों के लिए खर्च बढ़ाने, न्यूनतम वेतन में वृद्धि करने, जापान को अमेरिका का पिछलग्गू न बनाने के वायदे किए थे। डीपीजे ने अमेरिका से संबंध बनाए रखते हुए चीन सहित सारे पड़ोसियों से रिश्तों को बेहतर बनाने पर बल दिया था। मात्र १३ वर्ष पूर्व डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान की आधारशिला रखकर हातोयामा ने जापान की जनता के सामने एक ठोस वामपंथी-मध्यमार्गी विकल्प प्रस्तुत किया। हातोयामा, अपने दादा इशिरो हातोयामा के बाद अपने परिवार के दूसरे सदस्य होंगे, जो जापान के प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे। उनके पिता जापान के विदेश मंत्री रह चुके हैं। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले इस देश का प्रधानमंत्री पद संभालना होतोयामा के लिए बड़ी चुनौती होगी। यूकिनो ने १९९३ में सत्तारूढ़ एलडीपी से नाता तोड़कर नयी पार्टी बनाई और स्वयं पार्टी अध्यक्ष बने।

अमेरिका से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त ६२ वर्षीय हातोयामा इस माह के मध्य में वर्तमान प्रधानमंत्री तारो आसो का स्थान लेंगे। ३० अगस्त को संपंन्न हुए चुनाव में ४८० सदस्यीय निचले सदन में हातोयामा की पार्टी को मिली ३०८ सीटें के मुकाबले में सत्तारुढ़ एलडीपी को मात्र ११९ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि पूर्ण बहुमत के लिए अभी भी हातोयामा को कुछ और सीटों की जरूरत पड़ेगी।

इस चुनाव में वैसे तो कई तथ्य चौंकाने वाले रहे। इनमें ५४ महिलाओं ने भी जीत हासिल की। इतनी अधिक संख्या में जीत के बाद भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र ९ फीसदी ही है। जबकि यह ११ फीसदी होना चाहिए था।
उधार चुनाव में अपनी हार स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री आसो ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। सत्तारूढ़ एलडीपी अपने ५५ साल के इतिहास में महज दो बार ही सत्ता से बाहर हुई है। पहली बार जापान की कमान संभालने वाली डीपीजे को स्थापना के बाद पहली बार इतना बड़ा जनादेश मिला है। नए प्रधानमंत्री हातोयामा के सामने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने वाला बजट पेश करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। बजट पेश करने के लिए उनके पास महज १०० दिन ही बचे हैं।

जापान के चुनाव के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उसके नतीजे बहुत चौंकाने वाले हैं। एक लम्बे अर्से से महसूस किया जा रहा था कि वहां के मतदाताओं का सत्तारूढ़ दल से मोहभंग हो चुका है। एलडीपी जापान की आम जनता की बदलाव की आकांक्षाओं को पूरा करने में असफल रही थी। सरकार ने न तो महंगाई पर काबू पाया और न ही आर्थिक मंदी की चुनौती का सामना करने के लिए कोई रणनीति बनाई। जापान की शिक्षा प्रणाली, डाकद्घर, बैंकिंग और वित्तीय संस्थाएं पुरानी पड़ने लगी थीं। जिसके परिणामस्वरूप हाल के वर्षों में जापान की अंतरराष्ट्रीय बाजार पर पकड़ काफी हद तक कमजोर हो गई थी।

उसके उत्पाद बेहद महंगे समझे जाने लगे थे और गुणवत्ता के आधार पर इनकी मांग बनी नहीं रह सकी। इस झंझावत के बीच जापानी उद्योगों की प्रतियोगिता की क्षमता कम होने लगी। जापान में जिस रफ्तार से बेरोजगारी बढ़ी उससे दोगुनी रफ्तार से असंतोष बढ़ा। बहरहाल जापान के प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता ग्रहण करने जा रहे हातोयामा कुछ वर्षों पूर्व तक पुरानी पारंपरिक सत्ताधारी पार्टी के ही सदस्य थे। ऐसे में दो बातें बिल्कुल स्पष्ट हैं। एक, यह कि हातोयामा का उन मूल्यों, सिद्धांतों या विचारों से कोई बुनियादी मतभेद नहीं है जो एलडीपी के हैं और दूसरा, भ्रष्टाचार का मुद्दा।

गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने जो आर्थिक प्रगति की उसमें अमेरिका के संरक्षण और सहयोग की भी भागीदारी रही। जापान को अपनी सुरक्षा के लिए कुछ खर्च नहीं करना पड़ा। साथ ही उसके उत्पादों को आसानी से अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में जगह मिल गई।

जापानी जनमानस ने उग्र राष्ट्रवाद और नस्लवाद को कभी पूरी तरह से खारिज नहीं किया। भले ही परिवर्तन के लिए जापान एक बार फिर से तैयार हुआ है लेकिन जापान के हालिया चुनाव को किसी क्रांतिकारी बदलाव के रूप में देखना जल्दबाजी होगी। दरअसल जापान में राजनीति हो या समाज अथवा अर्थव्यवस्था, किसी भी क्षेत्र में बुनियादी परिवर्तन या कोई नयी शुरुआत करना बेहद कठिन काम है। शायद अत्याधुनिक समझी जाने वाली जापानी कारपोरेट कल्चर के मजबूत होने की यही एक वजह है। हां एक बात तो स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि जापान ने भी अमेरिकी राह पकड़ ली है।

अमेरिका के नागरिकों ने भी वैश्विक आर्थिक संकट की चुनौती से निपटने में वहां के दक्षिणपंथी रिपब्लिकनों को नाकामयाब पाया था और सत्ता की बागडोर बराक ओबामा को सौंपी थी जो उदार डेमोक्रेटिक पार्टी के हैं तथा जिन्होंने आर्थिक संकट से उबरने का कल्पनाशील रास्ता जनता के सामने प्रस्तुत किया। ऐसे में गहराते आर्थिक संकट के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान को पहली बार सत्ता सौंपने का निर्णय जापानवासियों ने किया है।

अब यह निश्चित हो चुका है कि एक अमीर परिवार से आए हातोयामा जापान के प्रधानमंत्री होंगे। ऐसे में उम्मीद करनी चाहिए कि जिस जापान के साथ भारत के पारंपरिक रिश्ते हैं, उसके लिए भी यह परिवर्तन सुखद होगा। इस बीच चुनाव में डीपीजे की शानदार जीत पर पूर्व रक्षा मंत्री फूमियो को पराजित करने वाले एरिको ने कहा है कि वे मतदाताओं के साथ धोखेबाजी नहीं करेंगे।

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