Thursday, January 7, 2010

इक नज़र में २००९

'विश्व राजनीति साल भर अमेरिका, अफगानिस्तान, ईरान, चीन के ईद-गिर्द द्घूमती रही। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को शांति का नोबल पुरस्कार मिलना शांति के साथ-साथ नोबल के चयन प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर गया। कोपनहेगन समझौता के जिस तरह के नतीजे सामने आए उससे साफ हो गया कि शाक्तिशाली और अमीर देशों की मनमानी कम होने वाली नहीं है
वर्ष २००९ में जिन मुद्दों ने सुर्खियां बटोरीं उनमें ओबामा को नोबेल पुरस्कार का मिलना, भारत-अमेरिका के बीच बढ़ती नजदीकियां, ईरान में अहमदीनेजाद की वापसी, लिट्टे सरगना प्रभाकरण का अंत, म्यांमार का परमाणु कार्यक्रम,
अफगानिस्तान में करजई का दुबारा राष्ट्रपति बनना तथा नेपाल में अस्थिरता शामिल हैं। जर्मनी में मॉकेल एंजेल की वापसी, जापान में पचास वर्षों के बाद सत्ता परिवर्तन, भारत-चीन की बीच बढ़ती कटुता, पाकिस्तान की अस्थिरता, तालिबान नेता बैतुल्लाह मेहसूद का मारा जाना तथा ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी चर्चा में रहा। इटली के प्रधानमंत्री का विवादों में रहना और साल के अंत में उन पर हुए हमले के साथ-साथ टाईगर वुड्स के प्रेम प्रसंगों का चर्चा में आना और पॉप सिंगर माइकल जैक्सन की असमय मृत्यु के साथ ही वर्ष का समापन कोपेनहेगन की असफलता के साथ हुआ।
बीते साल की उपलब्यिों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिकी यात्रा को भला कैसे भुला जा सकता है। ओबामा प्रशासन की गर्मजोशी देखने लायक थी। २१वीं सदी में वैश्विक चुनौतियों से निपटने और अपने अवाम की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिहाज से भारत-अमेरिकी साझीदारी महत्वपूर्ण रही। इस यात्रा के दौरान छह समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये। र्ष की खास द्घटनाओं में श्रीलंका में लिट्टे और प्रभाकरन का अंत प्रमुख रहा। श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे के अंतिम ठिकाने मुल्लईतिब पर कब्जा कर लिया। लिट्टे की युद्ध विराम की द्घोषणा और दुनिया भर से तमाम विरोध के बावजूद श्रीलंका ने लिट्टे को नेस्तनाबूद कर देने का अभियान जारी रहा। श्रीलंका सरकार ने आर- पार की लड़ाई का मन बना लिया। लिट्टे और सेना के बीच निर्णायक कही जाने वाली इस जंग में हजारों निर्दोष तमिल नागरिक मारे गये, लाखों की तादाद में शरणार्थी बने। आखिरकार लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण को श्रीलंकाई सेना ने मार गिराया। पिछले छब्बीस सालों में दक्षिण एशिया की यह सबसे बड़ी कार्रवाई रही। द्घमासान लड़ाई में लिट्टे के कई प्रमुख कमांडरों समेत ढाई सौ लड़ाके मारे गए। मरने वालों में प्रभाकरण, उसका बेटा चार्ल्स एंथनी, प्रभाकरण के शीर्ष सहयोगी खुफिया इकाई के प्रमुख पोट्ट अम्मन और नौ सेना प्रमुख सूसई शामिल रहे।
पिछले साल का सबसे बड़ा आश्चर्य रहा ओबामा को नोबेल पुरस्कार मिलना। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के नाम नोबेल पुरस्कार चौकाने वाला रहा। जिसे लेकर इस पुरस्कार पर सवाल भी उठे। स्वयं ओबामा ने अपने को इस पुरस्कार के लायक नहीं माना। लगभग आधी सदी तक चले शीत युद्ध के बाद विद्घटित रूस के साथ अमेरिकी रिश्तों की बर्फ पिद्घलती दिखी। बराक ओबामा रूस से बेहतर संबंध बनाने के इच्छुक दिखे। कई महत्वपूर्ण समझौते के बावजूद ओबामा की रूस में मौजूदगी मौसम के तापमान के साथ ठंडी दिखी। पिछले बीस सालों से रिश्ते पर जमीं बर्फ इतनी सख्त हो चुकी थी जिसे हटाना ओबामा के लिए काफी मुश्किल रहा। वर्ष २००९ की शुरूआत बांग्लादेश के लिए अच्छी रही। सात साल बाद हुए आम चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली शेख हसीना प्रधानमंत्री बनी। लेकिन साल के दुसरे महीने में २५ फरवरी को बीडीआर जवानों ने विद्रोह कर दिया। लगभग ३३ द्घंटे तक चले इस विद्रोह में सेना के अधिकारियों समेत करीब ७४ लोग मारे गए। इसी साल जून में बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि शेख मुजीबुरेरहमान ने ही बांग्लादेश की आजादी की द्घोषणा की थी इसलिए उन्हें राष्ट्रपिता माना जाना चाहिए। साल के मध्य में समुद्री तूफान 'आइला' ने बांग्लादेश में भयंकर तबाही मचाई।
पड़ोसी देश नेपाल में भी प्याले में तूफान रहा। प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के इस्तीफे के बाद नेपाल में तूफान सा आ गया। ढाई सौ वर्षों के बाद नेपाल की राजशाही का अवसान हुआ। देश में लोकतंत्र बहाली की उम्मीदें जगी लेकिन बाद में वह भी धूमिल होने लगीं। सेनाध्यक्ष रुकमांगद कटवाल को बर्खास्त करने के प्रचंड के फैसले ने तूफान ला दिया। सहयोगी दलों के समर्थन वापस लेने के बाद सरकार अल्पमत में आ गयी। अंततः प्रचंड को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। आतंक का पर्याय बन चुके अफगानिस्तान में २० अगस्त को चुनाव संपन्न हुए। भय, हिंसा और संगीन के साये में लोगों ने मतदान किया। कई देशों के पर्यवेक्षक वहां मौजूद रहे। सुरक्षा के भारी इंतजाम किए गए। लेकिन चुनाव परिणाम किसी के पक्ष में नहीं आया। हमीद करजई के निकटतम प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला-अब्दुल्ला ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। आखिरकार फिर से मतदान हुआ और करजई को दूसरे कार्यकाल के लिए अफगानिस्तान का राष्ट्रपति नियुक्त किया गया।
पड़ोसी देश म्यांमार में लगभग पांच दशकों से लोकतंत्र के आंदोलन को पैरों तले रौंदने वाली सैन्य सरकार की तानाशाही चरम पर रही। पिछले तेरह सालों से अपने ही द्घर में नजरबंद लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की इस वर्ष भी हिरासत में रहीं। जनाल थानश्वे की अगुवाई में निरंकुश सैन्य सरकार ने सूकी की रिहाई के लिए दुनिया भर से उठी आवाजों को एक बार फिर दरकिनार कर दिया। १९९० में हुए आम चुनाव में सू की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को मिली भारी सफलता के बाद उन्हें निर्वाचित प्रधानमंत्री द्घोषित किया गया था लेकिन सैनिक तानाशाही ने सू की जीत को मानने से इनकार कर दिया और सत्ता हस्तांतरण से मना कर दिया। म्यांमार की गोपनीय परमाणु गतिविधियों ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। म्यांमार के इस कदम से दक्षिण एशिया की सुरक्षा को गहरा धक्का लगा।
ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद अमेरिकी सरकार की आंखों की किरकिरी बने रहे। अमेरिका अहमदीनेजाद की जीत से बौखला गया। तमाम विरोधों के बावजूद आखिरकार ५ अगस्त को ईरान के राष्ट्रपति पद की दूसरी बार अहमदीनेजाद ने शपथ ली। अहमदीनेजाद की भारी जीत के बाद चुनाव हारे मीर हुसैन मुसवी के समर्थकों ने चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। दुनिया के सामने इसे ईरान पर मंडराता संकट बताया गया। दरअसल यह ईरान का आंतरिक संकट नहीं, बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा दिखाया गया संकट था। अहमदीनेजाद की जीत से अमेरिका के मामले पर पसीना आ गया। वर्ष २००९ में नस्लवाद का मुद्दा छाया रहा। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों और भारतीय मूल के लोगों पर हमले जारी रहे। नस्लवाद के आरोपों को लेकर हो हल्ला मचता रहा। इन द्घटनाओं के बाद ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रहे भारतीयों छात्रों के बीच दशहत का माहौल रहा। भारतीय अधिकारियों ने ऑस्ट्रेलिया सरकार को अपनी चिंता से अवगत कराया। ऑस्ट्रेलिया में नस्लीय हमलों के विरोध में हजारों की संख्या में भारीतय छात्र सड़कों पर उतरे। लगातार हो रहे हमलों से नेता, अभिनेता दोनों नाराज दिखे। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी से मिलने वाली डॉक्टरेट की मानक उपाधि लेने से इंकार कर दिया। ऑस्ट्रेलिया में इस तरह की सैकड़ों द्घटनाएं द्घटीं।
वर्ष २००९ में जापान के चुनाव सम्पन्न हुए। जापान पर लगातार पचपन वर्ष से सत्ता पर काबिज लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को जनता ने नकार दिया। विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान को नयी बागडोर संभालने को मिली। हातोयामा ने इसे सत्ता के लिए मतदान करार दिया। इस चुनाव में सत्तारूढ़ दल के कई बड़े नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा। हातोयामा, अपने दादा इशिरो हातोयान के बाद अपने परिवार के दूसरे सदस्य हैं, जिन्होंने जापान के प्रधानमंत्री का पद संभाला।बीते वर्ष की प्रमुख द्घटनाओं में अमेरिका के अश्वेत राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा का काहिरा संबोधन लोकप्रिय हुआ। उन्होंने अमेरिका और इस्लाम के बीच मतभेद मिटाने का आह्‌वान किया। अपने भाषण में ओबामा ने अमेरिका के प्रति मुस्लिम देशों की नाराजगी को दूर करने की हर संभव कोशिश की। उन्होंने मुस्लिम देशों की दुखती रगों को छूने की कोशिश की। अफगानिस्तान और इराक में फैला अमेरिका प्रशासन मुसलमानों के प्रति अपनी सदाशयता का प्रयास करता दिखा। अमेरिका को ऐसा प्रतीत होने लगा कि हर समस्या का समाधान जंग से नहीं हो सकता।
वर्ष २००९ में भारत चीन के रिश्ते में खटास देखने को मिली। चीनी सेना ने भारत के लददख क्षेत्र में द्घुसकर चीनी भाषा में लाल रंग से 'चीन' लिख दिया। चीन ने न सिर्फ भारतीय सीमा में द्घुसपैठ बढ़ाई, बल्कि पड़ोसी देशों में दखल बढ़ाकर भारत को द्घेरने की कोशिश की। उसका यह कदम विस्तारवादी रणनीति का रहा। चीन का सिनजियांग प्रांत अपनी सांप्रदायिक हिंसा के कारण चर्चा में रहा। पांच जुलाई २००९ को भड़के इस दंगे में दो सौ से ज्यादा लोग मारे गए और आठ सौ से अधिक द्घायल हुए। दुनिया ने सिनजियांग की वीभत्स तस्वीरों को देखा। अपराध जगत की महारानी जई कीपिंग की गिरफ्तारी भी चर्चा में रही। छियालिस वर्षीय यह महिला गैर कानूनी तरीके से जुए के अड्डे चलाने के लिए जानी जाती है। साथ ही लोगों को गैर कानूनी तरीके से बंधक बनाने, समुद्र तटीय नगरों में अवैध तरीकों से नशीले पदार्थ बेचने का आरोप उन पर लगा।
फरवरी २००८ में पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली बेनजीर भुट्टो के कत्ल की इबारत लिखने के बाद शुरू हुई। लेकिन वर्ष २००९ में पाकिस्तान में पूरी तरह अराजकता रही। सुधार की बात तो दूर पाकिस्तान आतंकवाद के दलदल में धंसता चला गया। देश में जातीय हिंसा, आतंकवाद और अर्थिक संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा। पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में तालिबान और अलकायदा की चुनौती कमजोर होने की बजाय दिन-ब-दिन बढ़ती ही गयी। अमेरिकी हाथों से संचालित ऑपरेशन में कई मासूमों की जानें गयीं। पाकिस्तान का बलूचिस्तान दूसरा बांग्लादेश बनने की ओर अग्रसर दिखा। पाक सरकार ने अपनी नाकामी का ठीकरा भारत और अफगानिस्तान के सिर फोड़ने का प्रयास किया। ब्लूचिस्तान में पाकिस्तान विरोधी गतिविधियां वर्ष २००४ में और बढ़ी। गत वर्ष पाकिस्तान पर कई आतंकी हमले हुए।
तमाम आरोपों और विरोधों के बीच अफ्रीकी कांग्रेस के शीर्ष और बहुचर्चित नेता जैकब जुमा दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने में सफल रहे। जुमा को रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं। पूर्व राष्ट्रपति थाबो म्बेकी की सारी चालें धरी की धरी रह गई। अपहरण, भ्रष्टाचार दलाली और बलात्कार जैसे आरोपों को खारिज कर जनता ने उन्हें अपने सर आंखों पर बिठाया। इसमें जैकब की जनता के बीच लोकप्रियता और गरीबों के मसीहा की छवि अहम रही। नौ मई २००९ को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले जैकब जुमा दक्षिण अफ्रीका के बहुसंख्यक अश्वेत नागरिाकों के बीच काफी लोकप्रिय रहे। 'गरीबों का मसीहा और आमजन का प्रतिनिधि' का नारा देकर चुनाव जीतने वाले जैबक जुमा दक्षिण अफ्रीका की गरीब अश्वेत की उम्मीदों की किरण बने।वर्ष २००९ में जर्मनी में सम्पन्न हुए चुनाव में जनता ने एक बार फिर मॉकेल पर ही भरोसा किया। पूर्ववर्ती सतारूढ़ गठबंधन में शामिल रहे अपने प्रतिद्वंद्वी दल को धूल चटाते हुए लगातार दूसरी बार न सिर्फ शानदार जीत दर्ज की बल्कि अपने पसंदीदा दल के साथ गठबंधन बनाने में भी सफल रहीं।
विलासिता और भ्रष्टाचार के कारण चर्चा में रहे इटली के प्रधानमंत्री बर्लुस्कोनी साल के आखिर में जनता के कोप का शिकार बने। मिलान शहर में एक व्यक्ति ने उन पर हमला कर उन्हें द्घायल कर दिया। इससे पहले जॉर्ज बुश पर भी जूता फेंका गया था। २००९ में नब्बे के दशक के उत्तरार्द्ध में चर्चा में रहा सीटीबीटी एक बार फिर बहस के केन्द्र में रहा। परमाणु बमों का आतंकवादियों के हाथ लगने का भय भी दुनिया को सताता रहा। अमेरिका सरकार में तकरीबन दस वर्षों के बाद 'सीटीबीटी' को वैश्विक बहस के केन्द्र में लाने की कवायद शुरू हुई।वैसे यह साल कुदरती कहर का भी रहा। दुनिया के कई देशों में बीते साल कुदरत ने अपना कहर बरपाया। इंडोनेशिया,वियतनाम फिलीपींस और इटली में भारी तबाही हुई। सैकड़ो लोगों की जानें गयी।

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