Tuesday, March 9, 2010

भुला दिया 'आम आदमी' को

आम आदमी के नाम पर सत्ता में दूसरी बार वापसी करने वाली यूपीए सरकार ने आम बजट में 'आम आदमी' को ही भुला दिया। वित्त मंत्री ने किसानों और वेतनभोगियों को राहत देने के साथ ही साथ ढांचागत एवं सामाजिक क्षेत्रों के लिए आवंटन में वृद्धि की। लेकिन पेट्रोल, डीजल तथा अन्य
वस्तुओं के उत्पाद शुल्क में वृद्धि से महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ा दीं। महंगाई के मुद्दे पर बजट का बहिष्कार कर मुद्दाविहीन विपक्ष ने भी अपना फर्ज पूरा कर लिया
आध्र प्रदेश में विपक्षी दलों के विधायकों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफे का विरोध का अनूठा तरीका निकाला। टीडीपी नेता पहले तो बैलगाड़ी में फिर साइकिल पर सवार होकर विधानसभा पहुंचे। उधर केरल की सड़कों पर लाल झंडे लेकर वामपंथी विरोध प्रदर्शन करते दिखाई पड़े तो दिल्ली में प्रतिरोध करने वालों को पानी की बौछारों का सामना करना पड़ा। सरकार के खिलाफ मुद्दों का सूनापन झेल रही विपक्षी पार्टियों के लिए मानो बहार आ गयी। भारत के करीब साठ साल के संसदीय इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ जब पूरे विपक्ष ने एकजुट होकर आम बजट का न सिर्फ बहिष्कार किया, बल्कि संसद से वाक आउट भी किया। विपक्ष के इस व्यवहार को सामान्य राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं कहा जा सकता। विपक्ष की मानें तो यह देश का 'आम बजट' नहीं, बल्कि 'खास बजट' है।हाल ही हुए आम चुनाव के बाद लोगों को ऐसा महसूस होने लगा था कि अब यूपीए की स्थिर सरकार आम जनता के हित को ध्यान में रखते हुए बजट पेश करेगी। लेकिन पिछले दिनों जिस महंगाई की मार से जनता त्रस्त थी उस पर इस आम बजट ने जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। बीते वर्ष दुनिया को मंदी की मार झेलनी पड़ी, लेकिन इस मंदी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई नहीं। लगता है हमारे राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस ने इससे कोई सबक हासिल नहीं किया। यही वजह है कि अपनी अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करने का जज्बा बजट के दौरान नहीं दिखा। आम आदमी के नाम पर सत्ता में वापसी करने वाली केंद्र सरकार खाद्य वस्तुओं के मूल्य नियंत्रित कर पाने में लाचार दिखी। ऐसी आशा की जा रही थी कि वित्त मंत्री आम बजट में ऐसी कई द्घोषणाएं करेंगे जिससे बेलगाम हो चुके खाद्य पदार्थों के मूल्यों पर गिरावट न सही, स्थिरता देखी जाएगी। लेकिन आम बजट में आम आदमी के लिए ऐसा कुछ नहीं हुआ।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मध्यम वर्ग को आयकर में छूट देकर उसे महंगाई से बचाने का दिखावा करने का प्रयास तो किया, लेकिन उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी के साथ पेट्रोलियम पदार्थों में वृद्धि से स्पष्ट हो गया कि कोई राहत मिलने वाली नहीं। वित्त मंत्री ने माना कि मंदी से हम उबर चुके हैं। मंदी ने हमारे विकास को प्रभावित किया है। मौजूदा महंगाई के लिए उन्होंने मानसून की बेवफाई को दोषी बताया पर मनमोहन सरकार को बरी कर दिया। उन्होंने उम्मीद जताई कि देश की विकास दर ८ .५ फीसदी तक पहुंच जाएगी, लेकिन फिलहाल उनका लक्ष्य नौ फीसदी तक विकास दर हासिल करना है। वित्त मंत्री ने जहां करदाताओं को टैक्स सीमा बढ़ाकर खुश किया वहीं पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने के प्रस्ताव ने संसद से सड़क तक लोगों को नाराज कर दिया है। विपक्ष ने इस बजट को जन विरोधी, किसान विरोधी और गरीब विरोधी बताया।दरअसल पिछले वर्ष मंदी के दौर में सरकार ने चुनाव के मद्देनजर रियायतों का पिटारा खोल दिया। करीब साठ हजार करोड़ रुपये के कृषि राहत पैकेज की द्घोषणा की गयी। यही वजह रही कि सरकारी खजाने की स्थिति चिंताजनक हुई और राजकोषीय द्घाटा निराशाजनक होने लगा। राजकोषीय द्घाटे को नियंत्रित करने के लिए हालांकि कुछ नए कर लगाए गए हैं लेकिन अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति से साढ़े पांच प्रतिशत तक इसे ला पाना एक चुनौती है। जानकारों के मुताबिक बजट का कोई दूरगामी परिणाम नजर नहीं आता। आधारभूत ढांचे में बजट आवंटन बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में जान फूंकी जा सकती थी, पर ऐसा हुआ नहीं।एक तरफ जहां अन्य देश लगातार अपने रक्षा बजट में इजाफा कर रहे हैं, वहीं वित्त मंत्री का रक्षा बजट में कंजूसी करना समझ से परे है। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों का मनोबल बढ़ाने का कोई उपाय इस बजट में नहीं किया गया है। प्रशासनिक सुधार की बात तो कही गई है पर सरकारी मशीनरी के खर्चे कम करने की कोई चर्चा नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य सामाजिक क्षेत्र के बजट में कोई खास बढ़ोतरी नहीं की गई है। खतरा यह है कि थोड़ा-थोड़ा धन सबको देने से सभी दूरगामी योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं, जिसका सीधा असर सकल द्घरेलू उत्पाद पर पड़ेगा और जिस राजकोषीय द्घाटे को कम करने की कोशिश की जा रही है वह और बढ़ सकता है। डीजल और पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में एक-एक रुपये प्रति लीटर की वृद्धि करने की द्घोषणा से इनके मूल्यों में ढाई रुपये प्रति लीटर से अधिक की वृद्धि हो गई। इन प्रस्तावों का विपक्ष ही नहीं, बल्कि सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दलों ने भी भारी विरोध किया। डीजल के दाम बढ़ने से आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरत की चीजें तो महंगी होगी ही बजट प्रस्तावों से बुनियादी क्षेत्र में काम आने वाले सीमेंट, लोहा, कोयला वाहन आदि कई उद्योगों पर सीधा असर पड़ेगा। महंगाई पर बिना मतदान वाली चर्चा से सत्ता पक्ष को राहत मिली, लेकिन यदि समूचा विपक्ष एकजुट बना रहा तो सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यही वजह है कि चौथी बार आम बजट पेश कर रहे प्रणब मुखर्जी ने ममता बनर्जी की तरह शेरो-शायरी का सहारा नहीं लिया और शुरू से अंत तक गंभीर बने रहे।

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