Friday, October 23, 2009

ओबामा को नोबेल

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के नाम नोबेल शांति पुरस्कार का एलान वाकई चौंकाने वाला है। न सिर्फ इसलिए कि पिछले एक दशक में वह तीसरे अमेरिकी राजनेता हैं, जिन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान मिला है, इसलिए भी कि सम्मान के लिए
नामांकन की तारीख खत्म होने के ग्यारह दिन पहले ही वे राष्ट्रपति बने थे। नोबेल पुरस्कार समिति ने ओबामा के पक्ष में चाहे जितने भी कसीदें गढ़े हों, लेकिन एक बार फिर यह सर्वोच्च सम्मान विवादों के द्घेरे में आ गया है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि पुरस्कार समिति ने भविष्य में निवेश किया है। इसे एक संयोग कहें या फिर विडंबना कि ओबामा को ऐसे समय नोबेल पुरस्कार मिला जब उन्होंने शांति के दूत कहे जाने वाले प्रसिद्ध धर्मगुरु दलाई लामा से मिलने से इन्कार कर दिया।
ओबामा को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और लोगों के बीच सहयोग को मजबूती देने के उनके असाधारण प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है। ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति हैं। दुनिया भर में शांति कायम करने के प्रयास, मुस्लिम देशों के बीच अमेरिका की छवि अच्छी बनाने और परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर वे हमेशा सुर्खियों में रहे। राष्ट्रपति ओबामा ने इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार जीतने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा 'मैं नहीं समझता कि मैं दुनिया की काया पलटने वाले उन अनेक व्यक्तियों के साथ शामिल होने के काबिल हूं।' ओबामा तीसरे ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिनको उनके कार्यकाल के दौरान इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इससे पहले १९०६ में थियोडोर रोजवेल्ट को, १९१९ में वुडरो विल्सन को यह सम्मान प्रदान किया गया था।
ओबामा की वैश्विक कूटनीति का मुख्य केंद्र मुस्लिम जगत की ओर हाथ बढ़ाना रहा, जो अफगानिस्तान और इराक में युद्ध के चलते लंबे समय से अमेरिका को अपना दुश्मन मानता है। ओबामा ने अमेरिकी युद्धनीति की आलोचना की। पश्चिम एशिया के लिए विशेष दूत की नियुक्ति के बाद इजराइल और फिलीस्तीनी नेताओं को एक मंच पर लेकर आए। उन्होंने जून में काहिरा में मुस्लिम जगत के साथ संबंधों पर प्रमुख भाषण दिया। चौवालीस वर्षीय ओबामा ने ईरान और म्यांमार जैसे देशों के साथ भी बातचीत के दरवाजे खोले जिन पर बीते कई वषोर्ं से आर्थिक प्रतिबंध लागू हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा के माध्यम से ओबामा ने विश्व से परमाणु शस्त्रों की कटौती के लिए भी अपील की। यूरोप के लिए रक्षा नीति पर उन्हें रूस से भी समर्थन मिला।
राष्ट्रपति ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की द्घोषणा पर अमेरिकी बेशक गर्व व्यक्त कर रहे हैं लेकिन अगर देश में हुई प्रतिक्रिया को किसी एक शब्द में समेटा जा सकता है तो वह है 'आश्चर्य'। स्वयं अमेरिका में इस फैसले पर आश्चर्य है। मीडिया में वह राष्ट्रीय उत्साह नहीं देखा जा रहा है जो अमेरिकी दिखाने में मशहूर हैं। आश्चर्य में अविश्वास और संशय ही देखने को मिल रहा है। सीएनएन के मॉडरेटर जॉन मान ने पुरस्कार की द्घोषणा पर कहा कि एक व्यक्ति जो सिर्फ नौ महीने से इस उच्च पद पर है, दो देशों में युद्ध लड़ रहा है उसे शांति के लिए दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार मिल रहा है।
पुरस्कार मिलने पर आम लोगों को भी हैरानी हुई है। लेकिन इससे भी हैरत में डालने वाली बात यह है कि उनके गृहनगर में ही लोगों को इस पर विश्वास नहीं हो रहा। अखबारों द्वारा कराये गये जनमत सर्वेक्षण से यह बात सामने आयी है कि ७० प्रतिशत लोगों का यह मानना है कि बराक इसके हकदार नहीं हैं। राष्ट्रपति ओबामा को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने पर रिपब्लिकनों ने संशय, संदेह और गुस्से के साथ प्रतिक्रिया दी हैं। रिपब्लिकन नेशनल कमेटी के चेयरमैन माइकल स्टीले ने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' करार दिया और आरोप लगाया कि ओबामा का दर्जा सेलिब्रिटी का है। उन्होंने किसी वास्तविक उपलब्धि के चलते यह सम्मान हासिल नहीं किया है। स्टीले ने अपने बयान में कहा अमेरिकी के साथ-साथ पूरी दुनिया के लोग यह वास्तविक सवाल उठा रहे हैं कि आखिर ओबामा ने किया क्या है?
विश्व शांति के लिए १९९४ में जब प्रमुख फिलिस्तीनी नेता यासिर आराफात को नोबेल पुरस्कार मिला था तो उसका मखौल स्वयं अमेरिकी मीडिया ने उड़ाया था। लिखा जा रहा था, क्या इस बार पुरस्कार के लिए 'हत्यारा' होना शर्त थी। अब जबकि बराक ओबामा को यह सम्मान दिया गया है तो क्या पूछा जा सकता है कि क्या इस बार सिर्फ 'बातें' काफी थीं। गौरतलब है कि ओबामा ने २० जनवरी २००९ को अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ली। नोबेल शांति पुरस्कार के नामांकन की अंतिम तिथि एक फरवरी २००९ थी। यानी ग्यारह दिन के उनके कार्यकाल पर उन्हें विश्व में अमन स्थापित करने का सम्मान दे दिया गया। ओबामा के वे प्रयास जो किसी को दिखे तक नहीं नोबेल कमेटी को 'असाधारण' और 'अद्वितीय' लगे। सम्मान की द्घोषणा वाले दिन तक ही वे नौ माह की किस शांति के अग्रदूत थे?
ओबामा को नोबेल पुरस्कार मिलने पर विश्वभर में मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आयी।
ईरान के राष्ट्रपति के सलाहकार अली अकबर ने उम्मीद जताई कि इस पुरस्कार से बराक ओबामा को पूरी दुनिया में न्याय स्थापित करने के रास्ते पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। हम इससे कतई खिन्न नहीं हैं। हम समझते हैं यह पुरस्कार लेने के बाद ओबामा दुनिया से अन्याय हटाने की दिशा में कुछ व्यावहारिक प्रयास शुरू करेंगे। वहीं अफगानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह ने कहा है कि ओबामा ने अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया है। हम ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की भर्त्सना करते हैं। हम उस संगठन की भी भर्त्सना करते हैं, जो ओबामा को शांति पुरस्कार दे रहा है।
बहरहाल, महानता कभी निर्दोष नहीं होती, और शायद नोबेल पुरस्कार भी इससे अछूते नहीं रह सकता। लेकिन जिस सम्मान को पाने की हसरत अनेक लोग पालते हों, उसे इतना पारदर्शी और विवादरहित तो होना ही चाहिए कि उसकी खुद की साख दांव पर न लगे। ऐसा नहीं है कि इस पुरस्कार पर पहली बार कोई प्रश्नचिह्न लगा है। इससे पहले कई बार इस पर उंगली उठी है लेकिन इस वर्ष शांति के नोबेल को लेकर अशांति फैल गयी है। बेशक, ओबामा के इरादे नेक हों, वह दुनिया को परमाणु शस्त्र विहीन बनाने का दम भरते हों, लेकिन उन्हें अपने आचरण से इसे साबित करना चाहिए। ओबामा यथास्थिति को तोड़कर समस्याओं का समाधान चाहते हैं।
परमाणु निरस्त्रीकरण पर उनकी नीयत ज्यादा सुरक्षित विश्व बनाने की है इसमें कोई शक नहीं। ओबामा सच्चे अर्थों में मार्टिन लूथर किंग के अनुयायी हैं जो सौहार्द और संवाद के सहारे समस्याएं सुलझाना चाहते हैं। कुटिलता और स्वार्थ से भरे अंतरराष्ट्रीय राजनय में उनका यह रवैया खुली हवा के झौके की तरह है। यकीनन वे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अमेरिका की पश्चिम एशिया नीति को बहुत हद तक बदलने का जोखिम उठाया है।

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