Thursday, October 8, 2009

सत्ता में फिर से वापसी

जब-जब जर्मनी से किसी बड़े परिवर्तन की आहट सुनाई देती है यूरोप सशंकित हो उठता है। ऐसे में सारी दुनिया की निगाहें उसपर लग जाती हैं। हाल ही में जर्मनी में संपन्न चुनाव में ऐसी ही स्थिति देखने को मिली। यूरोप की सबसे बड़ी

अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी के आम चुनाव में चांसलर एंजेला मॉर्केल ने पूर्ववर्ती सत्तारूढ. गठबंधन में शामिल रहे अपने प्रतिद्वंद्वी दल को धूल चटाते हुए लगातार दूसरी बार न सिर्फ शानदार जीत दर्ज की है बल्कि अपने पसंदीदा दल के साथ गठबंधन बनाने के लिए भी जनमत हासिल कर लिया है।

२७ सितंबर के चुनाव परिणामों ने दुनिया की सबसे ताकतवर महिला मानी जाने वाली ५५ वर्षीय मॉर्केल को आर्थिक मंदी से निपटने के लिए अपने पसंदीदा दल फ्री डेमोक्रेट यानी एफडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाने का मौका दे दिया। देश की पूर्ववर्ती गठबंधन में शामिल रही देश के सबसे बड़ी मध्यमार्गी वामपंथी पार्टी सोशल डेमोक्रेट को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अब तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है।

पिछले चार सालों से सोशल डेमोक्रेट्स के साथ गठबंधन को दरकिनार कर मॅार्केल द फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी यानी एफडीपी के सहयोग से चार साल का दूसरा कार्यकाल हासिल करने में सफल रहीं। मॅार्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) तथा उसकी सहयोगी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) ने २३९ सीटें हासिल कर ली हैं। एफडीपी ने चुनावों में ९३ सीटें हासिल की हैं। इस प्रकार सीडीयू को ३३२ सीटों का बहुमत मिला है। सीडीयू ने १४६ सीटें, वाम दलों ने ७६ सीटें और अन्य ने ६८ सीटें जीतीं। सीडीयू के पिछली सरकार में मॅार्केल के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। जीत के बाद मॅार्केल ने कहा मेरे लिए खुशी की बात है कि हमें एक बार फिर सरकार बनाने का मौका मिला।

हम सचमुच जश्न मना सकते हैं लेकिन आगे हमारे लिए कठिन रास्ता है। जर्मनी में संसदीय चुनाव प्रक्रिया में जिस तरह अनिश्चिता देखी गई उतनी ही निश्ंिचतता से जनता ने नई सरकार चुनी।
जीत के बाद मॅार्केल ने कहा कि वह नई सरकार के गठन के लिए वेस्टरवेस्ले से निर्णायक बातचीत करेंगी। कर में कटौती के मुद्दे पर अंतिम फैसला होते ही उम्मीद है कि नई सरकार गठित हो जायेगी। गौरतलब है कि एफडीपी १६ साल में बाद वापस न सिर्फ सत्ता में आई है, बल्कि नए गठबंधन में उसका प्रभाव भी बढ़ा है। निचले सदन में पार्टी ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए रिकार्ड मत हासिल किए हैं।

चुनाव परिणामों की द्घोषणा के तुंरत बाद हार स्वीकार करते हुए एसपीडी के चांसलर पद के उम्मीदवार फ्रांक वान्टर श्याइनमायर ने संसदीय दल के नेता के रूप में काम करने की बात कही। पार्टी नेतृत्व उन्हें इस पद के लिए प्रस्तावित कर रहा है, वे पेटर का स्थान ले रहे हैं जो सक्रिय राजनीति से विदा लेने वाले हैं। एसपीडी के अंदर गणतंत्र के इतिहास की सबसे बुरी हार के बाद जिम्मेदारी की बहस छिड़ गई है। पार्टी प्रमुख क्युंटेफेरिंग ने पद छोड़ने के संकेत दिए हैं। पार्टी उपाध्यक्ष आंडेजा नाहलेस का कहना है कि अब पहले की तरह नहीं चल सकता, एसपीडी को जीर्णोद्धार की जरूरत है।

जर्मनी के आम चुनाव के नतीजों पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खूब चर्चा रही। खासकर सियासी परिदृश्य में बदलाव और नई सरकार की वित्तीय और आर्थिक नीति को लेकर दुनियाभर के अखबारों ने टिप्पणी की। सारी दुनिया की निगाहें जर्मनी के आम चुनाव पर लगी थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नख-दंत विहीन हो जाने और दो टुकड़ों में बंट जाने के बावजूद जर्मनी ने खुद को बहुत कायदे से संभाला। मौका मिलते ही दोनों टुकड़े फिर एकजुट हुए और आज वह यूरोप की सबसे बड़ी और दुनिया की पांचवें नंबर की आर्थिक ताकत है।

अंजेला मॅार्केल ३६ साल की उम्र तक जिंदगी की जद्दोजहद में इतनी मशगूल रहीं कि उन्होंने राजनीति के बारे में सोचा ही नहीं था। लेकिन जैसे ही १९८९ में बर्लिन की दीवार टूटी और दोनों तरफ के लोग एक हुए, मॅार्केल ने भी अपनी राजनीतिक आंखें खोलीं। पिछले २० वर्षों से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। चार साल पहले वह पूर्वी जर्मनी मूल की पहली चांसलर बनीं। इस बार के चुनाव में उनके बारे में क्या नहीं कहा गया। वह तलाकशुदा हैं, मुंहफट हैं, पुरूषों को कुछ नहीं समझतीं और क्रिश्यिचन डेमोक्रेट के भेष में कम्युनिस्ट हैं। लेकिन उन्होंने जवाब दिया कि जर्मनी को एक गंभीर नेता चाहिए, ब्रिटनी स्पीयर्स नहीं। दुनिया आर्थिक मंदी के भयावह दौर से गुजर रही है। ऐसे समय में देश को ऐसा नेता चाहिए जो कड़े फैसले ले सके।

कुछ साल पहले देश की आर्थिक विकास दर सात प्रतिशत थी, आज एक प्रतिशत से भी कम है। वह आर्थिक सुधार के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। उनकी प्राथमिकता हर हाल में नौकरियां बचाना और नई नौकरियों का सृजन है। इसके लिए वह मुक्त व्यापार की पक्षधर पार्टी फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहती हैं जिसका पहला लक्ष्य है चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बनना। यानी नए आत्मविश्वास से लबरेज अंजेला मॅार्केल कुछ और आक्रमकता के साथ विश्व रंगमंच पर खुद को पेश करेंगी, न सिर्फ आर्थिक मोर्चों पर, बल्कि राजनीति और सामरिक मोर्चों पर भी।

विश्लेषकों के मुताबिक दोनों दक्षिणपंथी पार्टियां मिलकर जर्मनी में कर, श्रम सुधार नीतियों और द्घरेलू सुरक्षा में सुधार करने का प्रयास करेंगी। सीडीयू के महासचिव रोनाल्ड के अनुसार गंठबंधन के लिए बातचीत जितनी जल्दी हो सकेगा, शुरू की जाएगी। जानकारों की मानें तो नई सरकार के सामने बजट द्घाटे, बढ़ती बेरोजगारी पर लगाम व कर्ज चुकाना जैसी चुनौतियां होंगी। सीडीयू की जीत से शेयर सूचकांक में उछाल आया है। प्रमुख अर्थशास्त्री नोटबर्ट वाक्टर ने कहा है कि नई सरकार की नीतियां बाजारोन्मुखी हैं। मुझे विश्वास है कि अपने आर्थिक संकट से जर्मनी जल्द ही उबर जाएगा।

इस बीच चांसलर मॅार्केल को अपनी चुनावी सफलता पर दुनिया भर से बधाइयां मिल रही हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने कहा है कि यह सफलता मॅार्केल के प्रति जर्मन जनता के विश्वास की अभिव्यक्ति है। अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चांसलर मॅार्केल को बधाई दी। व्हाइट हाउस ने कहा कि अमेरिका राष्ट्रपति और जर्मन चांसलर एंजेला मॅार्केल के बीच इस बात पर सहमति है कि जर्मनी में एक मजबूत सरकार के आने के बाद दोनों देशों का सहयोग और बढ़ेगा तथा मजबूत होगा। अमेरिका और जर्मनी एक दूसरे के विश्वस्त सहयोगी हैं और दुनियाभर में आजादी, सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए दोनों देश एक साथ काम कर रहे हैं। जर्मनी के साथ सहयोग बढ़ते देखना चाहते हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री गॉडेन ब्राउन ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि वे चांसलर मॅार्केल के साथ अपने कारोबारी संबंध बनाए रख सकते हैं।

भारतीय मूल के तीन सांसद जर्मन संसद बुंडेसटाग में पंहुचे हैं। एसपीडी के सेवा क्रिश्चयन एडाधी ने अपनी सीट सीधे जीती है, जबकि ग्रीन पार्टी के जोसेफ विंकलर और वामपंथी राजू शर्मा पार्टी सूची से संसद में पहुंचे हैं। वामपंथी डी लिंके ने भारतीय मूल के वकील राजू शर्मा को होलश्टाइन प्रांत में अपना उम्मीदवार बनाया था। जर्मनी के संसदीय चुनावों में इस बार भारतीय मूल के चार उम्मीरवार मैदान में थे। इनमें से दो सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के और ग्रीन पार्टी के जोसेफ विकलर।

मौटे तौर पर नई जर्मन सरकार से कुछ ज्यादा अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए, लेकिन भारत के लिए ये चुनाव खास रहे हैं। भारत में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है और यही रूझान जर्मनी में भी देखने को मिला है। राजदूत श्यागा कि मानें तो मनमोहन सिंह और मॅार्केल के बीच बहुत अच्छी समझदारी है जो आने वाले दिनों में लाभदायक साबित होगी। उनके अनुसार, जर्मनी के लिए भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती भूमिका बहुत मायने रखती है। विश्लेषकों का भी मानना है कि अब तक दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्ते प्रबल रहे हैं और अब समय आ गया है राजनीतिक रिश्तों को और आगे बढ़ाने का। जर्मनी और भारत एक साथ सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता के लिए कोशिश कर रहे हैं, इसलिए भी इस रिश्ते को नई दिशा मिलनी चाहिए।

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद जर्मनी को आर्थिक मंदी की भयावह मार झेलनी पड़ी है। क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स दोनों ही कर कटौतियों के प्रबल पक्षधर है। इस बार फ्री डेमोक्रेट्स सरकार की नीतियों को ज्यादा प्रभावित करने की स्थिति में होंगे। उनके नेता वेस्टरवैले बाजार और व्यापारियों के चहेते हैं। वे विदेश, वित्त और न्याय मंत्रालय चाहेंगे जो परंपरा से उन्हें मिलते भी आए हैं। अगर वेस्टरवैले सचमूच देश के विदेश मंत्री बनते हैं तो उनके लिए इस्लामी देशों के साथ कूटनीति में दिक्कत पेश आ सकती है क्योंकि वे समलैंगिक हैं। जो भी हो माकेल की दूसरी पारी आशा लगाने वाली ही मानी जाएगी।

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