Thursday, October 1, 2009

दूरदर्शन का सुहाना सफ़र

बहुत खामोशी के साथ विश्व में सर्वाधिक लोगों तक पहुंच रखने वाले 'दूरदर्शन' ने अपनी स्थापना के पचास साल पूरे कर लिए। भारत में आर्थिक उदारीकरण आने के बाद लगभग चार सौ से अधिक चैनल आए और दूरदर्शन को उनसे कड़ा संद्घर्ष भी करना पड़ा।

लेकिन इस संद्घर्ष में भी उसने अपनी विश्वसनीयता और भरोसे को कायम रखा। चोटी के दो साहित्यकारों कमलेश्वर और मनोहर श्याम जोशी ने इसे बुद्धु बक्से की छवि से निकालकर आम आदमी का चैनल बनाया। कमलेश्वर ने दूरदर्शन का महानिदेशक रहते हुए समाचारों में आमूल-चूल परिवर्तन किए और परिक्रमा जैसे कई लोकप्रिय समसामयिक कार्यक्रम तैयार करवाए। जबकि मनोहर श्याम जोशी ने 'हम लोग' जैसा धारावाहिक लाकर नई क्रांति की

दूरदर्शन ने अपनी स्थापना के ५० वर्ष पूरे कर लिये हैं। एक जमाना था जब सिर्फ दुरदर्शन ही था। इसकी पहुंच भारत के सुदूरवर्ती गांवों तक रही और इसने करोड़ों लोगों के विश्वास को हासिल किया। आज भी दूरदर्शन का नाम सुनते ही अतीत के कई खट्टे-मीठे अनुभव याद आ जाते है। इसके कई कार्यक्रम जैसे 'हमलोग', 'सुरभि', 'रामायण', 'महाभारत', 'चित्रहार', 'रंगोली', 'बुनियाद', 'परिक्रमा', 'स्वाभिमान', 'भारत एक खोज', 'आंखों देखी', 'नीम का पेड़', 'इंतजार', 'फौजी', 'फिर वही तलाश', 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने', 'कक्का जी कहिन', 'शांति', 'वर्ल्ड दिस विक', 'तमस', 'नुक्कड़', 'मालगुड़ी डेज', 'जंगल बुक', 'बातों बातों में' ने न सिर्फ लोकप्रियता हासिल की बल्कि देश में यह एक प्रभावशाली माध्यम के रूप में भी स्थापित हुआ।

दूरदर्शन ने न जाने ऐसे कितने सफल धारावाहिक के माध्यम से टीवी मनोरंजन के क्षेत्र में कई मिसालें कायम की हैं। आज भी यह भारत का सूचना, समाचार, संस्कार और मनोरंजन के कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाला सबसे बड़ा माध्यम है। इसने मनोरंजन के मायने ही बदल दिये साथ-साथ लोगों को शिक्षित करने में भी अहम भूमिका निभाई।

टेलिविजन ने पिछले ५० वर्षों में आसमानी ऊचाइयां हासिल की है। आज देशभर में करोड़ो लोगों के द्घरों में टीवी सेट है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब दिल्ली जैसे महानगर में मात्र १८ टीवी ही थे और लोग शहर में जगह-जगह कौतुहल के साथ इस अजब-गजब बक्से को देखते थे। दूरदर्शन ने तब से लेकर अब तक लम्बा सफर तय किया है। आज वह अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है। देश में बेशक लोगों के पास आज ४५९ टीवी चैनल और दूरदर्शन के ३५ चैनलों में से किसी को भी चुनने की स्वतंत्रता है। लेकिन आज भी ९० प्रतिशत दर्शक इससे जुड़े हुए हैं।

पन्द्रह सितंबर १९५९ को दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ तीन दिन आधा-आधा द्घंटे के लिए होता था। इसी वर्ष इसकी शुरुआत 'टेलिविजन इंडिया' नाम से हुई। इसका 'दूरदर्शन' नामकरण १९७५-७६ में हुआ। दूरदर्शन की एक दिलचस्प कहानी यह भी है कि उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जब दूरदर्शन के प्रसारण का उद्द्घाटन कर रहे थे, तब उद्द्घाटन प्रसारण में बाधा आ गई थी। ऐसे में लाचारीवश रुकावट के लिए खेद की पट्टी लगानी पड़ी। खैर राजेन्द्र प्रसाद ने स्विच ऑन कर इसका उद्द्घाटन किया। उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने शहनाई वादन प्रस्तुत किया। मंगल ध्वनि बजी।

इसके बाद धीरे-धीरे सफर तय करते हुए दूरदर्शन ने अपना पहला धारावाहिक 'हमलोग' शुरू किया। जल्दी ही यह सबसे ज्यादा देखा जाने वाला सीरियल बन गया। इसके सबसे अहम किरदार अशोक कुमार का सीरियल के अंत में जो बातें बताते थे उसे लोग बड़े ध्यान से सुनते थे। इसके बाद 'बुनियाद' आया। यह सीरियल भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद परिवारों के बनते-बिगड़ते संबधों पर आधारित था। इसके मुख्य कलाकार आलोक नाथ, अनीता केवर, विनोद नागपाल, एवं दिव्या सेठ आदि थे। रामानंद सागर के 'रामायण' को भला कौन भूल सकता है?

'रामायण' में राम और सीता की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल और दीपिका को आज भी लोग राम और सीता के रूप में ही पहचानते हैं। बीआर चोपड़ा के सीरियल 'महाभारत' से ही नीतीश भारद्वाज को कृष्ण के रूप में पहचान मिली। वहीं 'भारत एक खोज', 'दि सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान' और 'चाणक्य' ने लोगों को भारत की ऐतिहासिक तस्वीर से रूबरू कराया। जबकि जासूस 'करमचंद', 'रिपोर्टर', 'तहकीकात', 'सुराग' और 'बैरिस्टर राय' जैसे धारावाहिकों ने समाज में हो रही आपराधिक द्घटनाओं को स्वस्थ ढंग से पेश करने की कला विकसित की। लोग अगला ऐपिसोड देखना नहीं भुलते थे।

पुराने ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के सामने बैठे किसान भाई 'कृषि दर्शन' और मूक बधिरों के समाचार बड़े चाव से देखते थे। बीच -बीच में आने वाले छोटे विजुअल्स जैसे 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' 'प्यार की गंगा बहे देश में एका रहे' 'स्कूल चलें हम' 'सूरज एक चंदा तारे अनेक' 'एक चिड़िया अनेक चिड़िया' 'एक अन्न का ये दाना सुख देगा मुझको मनमाना' आदि भी बहुत ही चाव से देखे जाते थे। रविवार का दिन तो मानो दूरदर्शन का ही होता था। लोग सुबह उठकर 'रंगोली' देखते, फिर नाश्ता लेकर टीवी से चिपक जाते। दोपहर में ही कुछ समय के लिए टीवी से अलग हटते थे फिर शाम को हर रविवार को दिखाई जाने वाली फिल्म देखने बैठ जाते थे, तो फिर रात में ८ः४५ पर समाचार देखकर ही टीवी छोड़ते थे। उस समय के संडे का मतलब होना था आजकल का टोटल 'फन डे'।

बात खबरों की हो तो दूरदर्शन ने समाचारों के प्रसारण के मामले में रंग-रूप और नई-तकनीक जरूर अपना ली है लेकिन अभी भी उसके समाचारों में विश्वसनीयता बरकरार है। बिना किसी राग-द्वेष, लाग लपेट और नाटकीयता के समाचारों की प्रस्तुति खूब रही। दूरदर्शन ने विषय की गंभीरता को खत्म नहीं किया। आज इसके माध्यम से न सिर्फ हिन्दी और अंग्रेजी में समाचार प्रस्तुत किया जाता है, बल्कि अन्य कई भारतीय भाषाओं में भी समाचार प्रस्तुत किया जाता है।

समाचार से संबंधित कई अन्य कार्यक्रमों को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया जाता रहा है।ं दूरदर्शन का उद्देश्य समय भाव के साथ लोकहित का भाव है। इसी तरह धारावाहिक 'परिक्रमा' को कैसे भूलाया जा सकता है। सचमुच कमलेश्वर ने इस कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के सामने सच को उजागर किया। उसकी स्मृति आज भी लोगों के दिलो-दिमाग को झझकोर देती है। जहां तक चुनावों के विश्लेषण की बात है तो इसमें दूरदर्शन का जवाब नहीं। पहले चुनाव विश्लेषणों के बीच-बीच में हिन्दी फिल्में दिखायी जाती थी तााकि लोगों की रुचि इसमें बनी रहे।

वर्ष १९७२ में दूरदर्शन को तब राष्ट्रीय पहचान मिली जब उसका एक ट्रांसमीटर मुम्बई में भी लगाया गया। उसके बाद देश भर में ट्रांसमीटर लगाने का काम तेजी से आगे बढ़ा। पाकिस्तान की सीमा पर भी कई ट्रांसमीटर लगाए गए ताकि पाकिस्तानी प्रसारण का मुकाबला किया जा सके। तब तक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने टीवी की ताकत को पहचान लिया था। दूरदर्शन की तब तक कोई अलग पहचान नहीं थी और वह ऑल इंडिया रेडियो के अधीन ही आता था। इंदिरा गांधी ने एक सैटेलाइट कार्यक्रम तैयार करवाया। दूरदर्शन को ऑल इंडिया रेडियो से अलग कर स्वतंत्र पहचान दी गई। उन्होंने रंगीन टीवी के आयात को मंजूरी दी और उत्पादन को प्रोत्साहन देने का वादा किया। दूरदर्शन ने १९७५ में सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलिविजन एक्सपेरिमेंट कार्यक्रम के तहत नासा के उपग्रहों की मदद से देश के ६ राज्यों में शैक्षणिक कार्यक्रम का प्रसारण किया।

वर्ष १९८२ में देश ने टीवी पर पहली बार रंगीन चित्र देखा। एशियाई खेलों का इंदिरा गांधी ने सीधा प्रसारण करवाया। लोगों ने पहली बार दूरदर्शन पर एशियाई खेलों का आनंद उठाया। इसी दौरान दूसरे इनसेट श्रेणी के उपग्रह छोड़े गए और दूरदर्शन का प्रसारण स्वदेशी उपग्रहों से होने लगा। दूरदर्शन ने मेट्रो चैनल की शुरुआत की थी जिसका उद्देश्य बड़े शहरों में मनोरंजक कार्यक्रम परोसना था। इस चैनल ने शुरुआती सफलता भी अर्जित की लेकिन बाद में इसे बंद कर इसकी जगह समाचार चैनल शुरू किया गया।

आज दूरदर्शन कई चैनलों के साथ सबसे बड़ा टीवी नेटवर्क है। इस ५० साल की अवधि में इसने अर्श तक का सफर तय किया है। टेलिविजन का विस्तार कितनी तेजी से हुआ है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष १९७७ तक देश में केवल सात लाख द्घरों में ही टीवी सेट थे। आज १३ करोड़ से भी अधिक द्घरों में टेलिविजन देखा जा सकता है।

दूरदर्शन के देशभर में १४१२ ट्रांसमीटर हैं और ६६ स्टूडियो का नेटवर्क है। यह देश के करीब ९२ प्रतिशत से अधिक जनसंख्या को उपलब्ध है। एक सार्वजनिक प्रसारणकर्ता के रूप में यह विश्व में सबसे बड़े क्षेत्र को कवर करने वाला संस्थान है। इसका ध्येय वाक्य 'सत्यम शिवम सुंदरम' है। इसे ही ध्यान में रखते हुए दूरदर्शन देश की जनता के प्रति अपने फर्ज को निभाता आ रहा है। जनता के भरोसे से निश्चय ही स्वर्ण जयंती एक शताब्दी और फिर शताब्दियों तक की अनंत यात्रा बनेगी। चुनौतियों का सामना करते हुए दूरदर्शन तेजी से आगे बढ़ रहा है। बहुत कुछ हुआ है, बहुत कुछ होना बाकी है।

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