Friday, December 11, 2009

कैसे बहाल हो लोकतंत्र

नेपाल पिछले एक दशक से राजनीतिक अस्थिरता का शिकार है। पूर्व नरेश के सत्ता से हटने के बाद ऐसा लग रहा था कि वहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी। लेकिन हाल के द्घटनाक्रम से ऐसा महसूस हो रहा है कि वहां की जमीन अभी लोकतंत्र को विकसित करने के लिए तैयार नहीं है। आम जनता की भावनाओं का
प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां बिखराव की शिकार हैं और देश को एक संविआँाान देने में भी असमर्थ नजर आ रही हैं
नेपाल में राजशाही को समाप्त हुए करीब दो साल हो गए। उम्मीद थी लोकतंत्र स्थापित होगा और जनता की सरकार जनता के लिए स्थापित होगी। पर यह हो न सका है। शायद नेपाल दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जहां एक ही समय में दो नेता उप प्रधानमंत्री पद पर हैं। हारे हुए नेताओं से वहां की सरकार चल रही है। दो जगह से चुनाव हारे प्रधानमंत्री माधव नेपाल राज कर रहे हैं। नये संविधान निर्माण के लिए आम चुनाव हुआ था। संविधान निर्माण का काम समय पर पूरा होगा, इस पर शक ही है। शांति प्रक्रिया मजाक बन कर रह गयी है। माओवादी नहीं चाहें तो क्या मजाल कि कोई सड़क पर चले या संसद चला ले। माओवादियों ने सरकार के प्रति विरोध प्रदर्शन के तहत काठमांडू द्घाटी को ठप कर दिया था। सरकार ने माओवादियों से निपटने के लिए सेना और पुलिस बल को हाईअलर्ट कर दिया था।
इन सब के बीच नेपाल में पिछले कई महीनों से जारी गतिरोध के खत्म होने की संभावना बढ़ गयी है। सिंगापुर में पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोईराला और माओवादियों के प्रमुख नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच हुई मुलाकात में इस समस्या को सुलझाने के लिए रोडमैप तैयार कर लिया गया है। एक समझौते के तहत नेपाल के दोनों प्रमुख नेता मौजूदा संकट और गतिरोध खत्म करने के लिए बहुदलीय राजनीति तंत्र बनाने पर एकमत हो गए हैं। इस समझौते के बाद माओवादी नेता प्रचंड ने देश में जल्द ही नई सरकार के अस्तित्व में आ जाने की उम्मीद जाहिर की। उन्होंने बताया कि इसके लिए एक उच्च स्तरीय राजनीतिक तंत्र बनाया जाएगा। इस बात के जरिए उन्होंने राजनीतिक दलों के नए गठजोड़ की संभावना की ओर इशारा किया।सिंगापुर में कोईराला और प्रचंड के बीच करीब ४५ मिनट की बातचीत के दौरान देश के ताजा संकट पर विचार-विमर्श किया गया। कोईराला ने प्रचंड को राष्ट्रपति का अपमान किए बिना संकट का समाधान खोजने के लिए राजी किया। प्रचंड के सहयोगी समीर दहल के मुताबिक कोईराला के प्रस्ताव पर प्रचंड ने स्वीकृति दे दी है।
इसके बाद दोनों नेताओं के बीच सहमति बन गयी है। माओवादी मई में अपनी सरकार गिरने के बाद से नियमित तौर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। उन्होंने २२ पार्टियों वाली गठबंधन सरकार को अपदस्थ करने के लिए आंदोलन शुरू किया था। वे राष्ट्रपति रामबरन यादव से माफी मांगने को कह रहे थे। साथ ही देश में असैनिक शासन स्थापित करने की भी मांग कर रहे थे। माओवादियों ने विगत चार माह से संसद की कार्यवाही को भी बाधित कर रखा था। इसकी वजह से मौजूदा वित्तीय वर्ष का बजट अब तक पारित नहीं हो सका था।
प्रधानमंत्री कुमार माधव की ओर से की गई बातचीत की पेशकश ठुकराने के दो दिन बाद ही माओवादी बीच का रास्ता खोजने में जुटे थे। इसकी तलाश में प्रचंड ने सिंगापुर के अस्पताल में भर्ती पूर्व प्रधानमंत्री कोईराला से मुलाकात करने का फैसला कर सबको भौंचक कर दिया था। माओवादियों ने केंद्रीय सचिवालय और अन्य क्षेत्रीय प्रशासनिक कार्यालयों का भी कई दिनों से द्घेराव कर रखा था। देश में सरकारी कामकाज पूरी तरह ठप था और आम लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। मांगों के पूरा नहीं होने पर उन्होंने देशव्यापी बंद की धमकी भी दे रखी थी। माओवादी राष्ट्रपति रामबरन यादव से नागरिक सर्वोच्चता बहाल करने और मौजूदा गठबंधन सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर अड़े थे। साथ ही प्रचंड द्वारा बर्खास्त किए गए सैन्य प्रमुख से भी माओवादी नाराज थे। सूत्रों के मुताबिक कोईराला ने प्रचंड से कहा कि वह राष्ट्रपति का अपमान किए बिना समाधान का समर्थन करें, जिस पर प्रचंड ने सकारात्मक सहमति दी है।
इस बीच नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) का कहना है कि नेपाल के प्रगति करने के लिए भारत का साथ जरूरी है। सीपीएन (एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी) के चेयरमैन झलनाथ खनाल ने अपनी भारत यात्रा के दौरान बीबीसी हिन्दी के साथ हुई एक विशेष बातचीत में ये विचार व्यक्त किए। झलनाथ खनाल ने इस दौरान वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं एबी बर्धन और प्रकाश करात से मुलाकात की। झलनाथ खनाल का कहना था कि नेपाल में कैसी राजनीतिक व्यवस्था होगी, कैसे नेपाल आगे बढ़ेगा, इसका फैसला नेपाल की जनता करेगी। लेकिन भारत एक मित्र राष्ट्र है और नेपाल को लेकर भारत में एक व्यापक सहमति है। नेपाल को अपने संद्घर्ष, विकास में भारत की मदद की जरूरत होगी। माओवादियों के टकराव के रास्ते पर उनका कहना था कि इस संकट से निपटने के लिए माओवादियों को समझदारी दिखानी पड़ेगी। राष्ट्रीय सहमति के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। नेपाल में माओवादियों के आंदोलन के कारण सरकार वहां कुछ खास नहीं कर पा रही है। नेपाल में राजशाही की समाप्ति के बाद संविधान लिपिबद्ध करने का काम अगले साल यानी २०१० तक पूरा होना है। लेकिन संदेह है कि वर्तमान संकट के कारण यह निर्धारित समय पर पूरा हो सकेगा।

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