Friday, December 11, 2009

बनते नए रिश्ते

चीन अमेरिका की मजबूरी है और भारत अमेरिका की पंसद। दरअसल, अमेरिका जानता है कि चीन कारोबारी दृष्टिकोण से काफी फायदेमंद है। इसलिए ओबामा चीन और भारत के साथ संतुलन बनाने में जुटे हैं। ओबामा ने भारत और अमेरिका संबंधों को निरंतर द्घनिष्टतर बनाने की वकालत की है
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा के वक्त ओबामा प्रशासन और भारत के बीच जो गर्मजोशी देखी गयी वह स्वाभाविक है। आर्थिक मंदी के बाद अब दोनों देशों की मुख्य चिंता
आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाने की है। चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए भारत के साथ आर्थिक साझेदारी अमेरिका के हित में है। क्योंकि अभी तक अमेरिका ऐतिहासिक महामंदी की गिरफ्त से उबर नहीं पाया है। वहीं भारत के चिंतित होने की वजह ओबामा की चीन यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच बढ़ती सामरिक और कूटनीतिक नजदीकी थी। हाल के वर्षों में कूटनीतिक संबंधों की बुनियाद आर्थिक रिश्ते पर रखी जा रही है। इस बढ़ती नजदीकी से उम्मीद है कि अमेरिका आतंकवाद समेत भारत की राजनीतिक चिंताओं को लेकर सकारात्मक रुख दिखाएगा। उम्मीद है २१ वीं सदी में भारत-अमेरिका संबंध रिश्तों की नई परिभाषा लिखेंगे।
इस मुश्किल भरी २१ वीं सदी में वैश्विक चुनौतियों से निपटने और अपने अवाम की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिहाज से भारत-अमेरिका साझीदारी महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा में भारत और अमेरिका के बीच छह समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये। जो आतंकवाद को खत्म करने और उससे निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने से संबंधित है। वैश्विक सुरक्षा को बढ़ावा देने और आतंकवाद से निपटने के समझौते के अलावा दोनों देशों के बीच शिक्षा, विकास स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, द्विपक्षीय व्यापार, कूषि और हरित क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए समझौते किये गये। भारतीय प्रधानमंत्री ओबामा प्रशासन में अमेरिका यात्रा पर आने वाले पहले राजकीय अतिथि रहे। दोनों देशों ने परमाणु अप्रसार, मिसाइल नियंत्रण और परमाणु हथियार मुक्त विश्व के निर्माण के लिए साथ मिलकर काम करने के प्रति वचनबद्धता दोहराई। साथ ही जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से जुड़ी वार्ताओं में भी प्रगति की। दोनों देशो में आतंकवाद और अन्य अंतरराष्ट्रीय संकटों से लड़ने के लिए साथ मिलकर काम करने की बात हुई। ओबामा ने भारतको एक उभरती और जिम्मेदार विश्व शक्ति बताते हुए विश्वास जताया कि भारत और अमेरिका के संबंध और मजबूत होंगे।ओबामा ने माना कि अमेरिका के विकास में भारत की भूमिका अहम होगी। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वर्तमान में अमेरिका जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनका समाधान करने में भारत अहम भूमिका निभाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा उनके देश के युवाओं को भारत में रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त होंगे। आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए दोनों देशों के कैबिनेट स्तर के प्रतिनिधि सालाना बैठक करेंगे। यह बैठक बारी-बारी से अमेरिका और भारत में होगी। दोनों देश समूह विशेष आर्थिक नीतियों के बारे में लगातार एक दूसरे से संपर्क बनाए रखेंगे। गौरतलब है कि अमेरिका ने एक ऐसा ही समझौता चीन के साथ पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल में किया था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उम्मीद जताई है कि यह समझौता दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाने में मददगार होगा। उन्होंने आशा जताई कि उच्च स्तर की तकनीकी के हस्तांतरण से उद्योगपतियों को भारतीय बाजार में निवेश करने का बेहतर मौका मिलेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और अमेरिका को आतंकवाद के मुद्दे पर स्वाभाविक सहयोगी बताते हुए कहा कि दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ सहयोग बढ़ाते हुए खुफिया जानकारी साझा करेंगे। भारत को पहली बार परमाणु शक्ति के रूप में स्वीकारते हुए कहा, 'हम जैसा विश्व देखना चाहते हैं, भारत उसका अभिन्न हिस्सा है। दोनों देशों के बीच आर्थिक, तकनीक-विज्ञान, और पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, परमाणु करार को पूर्ण रूप से लागू करने पर सहमति बनी है। मनमोहन सिंह के आमंत्रण को स्वीकार करते हुए ओबामा ने अगले वर्ष भारत की यात्रा पर आने के लिए अपनी सहमति दे दी है। उन्होंने अफगानिस्तान में भारत के योगदान की सराहना की और कहा समृद्ध और शांत एशिया के निर्माण में भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।
इससे पहले व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में ओबामा दम्पती ने प्रधानमंत्री मनमोहन का भव्य स्वागत किया। स्वागत समारोह पहले व्हाइट हाउस के दक्षिणी लॉन में आयोजित किया जाना था, लेकिन बारिश के कारण इसे ईस्ट रूम में आयोजित किया गया। समारोह के बाद दोनों नेता ओवल हाउस में बातचीत करने चले गये। प्रधानमंत्री के सम्मान में ओबामा की तरफ से राजकीय भोज आयोजित किया गया। राष्ट्रपति ओबामा के कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने सबसे बड़ी पार्टी की मेजबानी की।
राष्ट्रपति ओबामा ने पाकिस्तान को उसकी सरजमीं से संचालित आतंकी संगठनों से प्रभावी तरीके से निपटने का संदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान सहित पूरे विश्व से आतंकवाद को नेस्तनाबूद किया जाना चाहिए, यहां काफी हिंसा और आतंकवाद देखा गया है। मुंबई जैसे हमलों को रोकने के लिए खुफिया सहयोग बढ़ाने के लिए सक्रियता से सहयोग करना चाहिए। संवाददाता सम्मेलन में राष्ट्रपति ओबामा ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार को लागू करने पर अपनी पूरी प्रतिबद्धता दोहराई। मनमोहन सिंह ने उम्मीद जताई कि मुझे पूरा विश्वास है कि यह प्रक्रिया बिना किसी और देरी के पूरी होगी। हालांकि पाकिस्तान के खिलाफ भारत के दो टूक बयान के बावजूद अमेरिका ने आक्रामक रुख नहीं अपनाया। ओबामा ने इस मसले पर कूटनीति का परिचय दिया।
मनमोहन सिंह का इस बार का दौरा बराबरी का रहा। बराक ओबामा का हिन्दी में स्वागत करना इसका सबूत है। यह दौरा कुछ पाने और कुछ खोने के लिए नहीं था। असैन्य परमाणु करार को लागू करने, पाकिस्तान में आतंकवाद से मुकाबला करने और जलवायु परिवर्तन जैसे मसले पर असहमति के बावजूद बातचीत का रुख सकारात्मक रहा है। करीब चार साल पहले परमाणु ऊर्जा समझौता बुश के कार्यकाल में हुआ था। लेकिन ओबामा के प्रशासन में प्रसंस्कूत परमाणु ईंधन की आपूर्ति में अड़चन के कारण मसला ठंडे बस्ते में था। इस मुलाकात से उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी। इस दौरे की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत और अमेरिका सीईओ फोरम का पुनर्गठन है। नए फोरम से, जिसकी अगुवाई रतन टाटा और डेविड कोटो करेंगे, ज्यादा कारोबारी पहल की उम्मीद की जा सकती है।
ओबामा ने भारत के उन द्घावों पर सिर्फ मरहम लगाने का काम किया, जो अचानक ही पिछले हफ्ते उनकी चीन यात्रा के दौरान उभर आए थे। यदि चीन और भारत के बारे में ओबामा द्वारा कही गई बातों की बारीकी से समीक्षा की जाए तो यह बात साफ हो जाएगी कि चीन अमेरिका की मजबूरी है और भारत अमेरिका की पंसद। दरअसल, अमेरिका जानता है कि चीन कारोबारी दृष्टिकोण से काफी फायदेमंद है। इसलिए ओबामा चीन और भारत के साथ संतुलन बनाने में जुटे हैं। ओबामा ने भारत और अमेरिका संबंधों को निरंतर द्घनिष्टतर बनाने की वकालत की है। दोनों पक्षों ने शिक्षा, कूषि, सुरक्षा, पर्यावरण, व्यापार आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए छोटे-मोटे कई समझौते किए हैं। लेकिन अभी भी कई ऐसी तकनीक हैं, जिन्हें अमेरिका भारत को देने में संकोच करता है। अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने पर अपनी राय स्पष्ट नहीं की है। भले ही इस यात्रा को कितना ही सफल क्यों न माना जाए पर अभी यह शुरुआत मात्र है। लेकिन इस यात्रा से एक बात स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में मनमोहन सिंह की यह अमेरिका यात्रा मील का पत्थर साबित होगी।

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