श्रीलंका में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम
चौंकाने वाला नहीं रहा। पहले से यह माना जा रहा था कि इस चुनाव में महिंदा राजपक्षे जीतेंगे और हुआ भी कुछ ऐसा ही। राष्ट्रपति पद के लिए करीब २२ उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे लेकिन मुख्य मुकाबला राजपक्षे और जनरल फोनसेका के बीच ही था। वैसे चुनाव का मुख्य मुद्दा लिट्टे के साथ चल रहे २६ साल पुराने गृहयुद्ध को समाप्त करने में निर्णायक भूमिका निभाने का ही रहा। ऐसे में आम लोगों की अपेक्षाएं राजपक्षे से ज्यादा थीं। यही कारण उनकी जीत का भी बना। गृहयुद्ध की विभीषिका झेल चुके श्रीलंका में स्थायी शांति के लिए लोगों ने राजपक्षे के पक्ष में मतदान किया। लेकिन इन सब के बीच नई सरकार के सामने अभी कई चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। मसलन सैन्यवाद, मानवाधिकारों का उल्लंद्घन, प्रेस की आजादी, अंधराष्ट्रवाद तथा तमिल अल्पसंख्यकों के अधिकार।जिस पैमाने पर राजपक्षे को जीत हासिल हासिल हुई है उससे एक बात स्पष्ट है कि अब श्रीलंका में लंबे समय तक राजनीतिक स्थायित्व बना रहेगा। चुनावों में मिली जीत से जानकारों का मानना है कि वहां के हालात में और सुधार आयेगा। ऐसे में राजपक्षे को श्रीलंका में व्याप्त भय के माहौल को खत्म करने के लिए एक अवसर प्राप्त हो गया है। लंबे समय तक चली तमिल और सिंहली खूनी जंग ने श्रीलंका की राजनीति और आर्थिक स्थिति की चूलें हिला दी थीं। देश की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए राजपक्षे को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि श्रीलंका अपने हिंसात्मक इतिहास से उबरने में सफल रहेगा। साथ ही ढाई लाख तमिलों को पुनर्वास कैंपों से बाहर निकालकर वापस मुख्यधारा में लाने में सक्षम होगा।
इस बीच श्रीलंका के रक्षा सचिव का कहना है कि सरकार राष्ट्रपति चुनाव में हार चुके जनरल सनथ फोनसेका के खिलाफ कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। वैसे श्रीलंका में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की चुनाव परिणामों के बाद हत्या का पुराना इतिहास रहा है। इसे देखते हुए सेना कमांडर फोनसेका ने अपनी जान के खतरे की आशंका जताई है। सैनिकों से द्घिरे एक होटल में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए जनरल फोनसेना ने कहा कि चुनाव में धांधली हुई है और सरकार उन्हें जान से मरवाने की कोशिश कर रही है। इस बीच सरकार का कहना है कि जनरल होटल छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन उन्हें उन आरोपों के नतीजों का सामना करना होगा जो उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लगाए थे। चुनाव में जनरल को पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग समेत कुछ विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त था।
दरअसल राष्ट्रपति राजपक्षे को जनरल फोनसेका की तरफ से दी गई चुनौती कोई सामान्य चुनौती नहीं थी। यह सेना के शीर्ष नेतृत्व का नागरिकों के शीर्ष नेतृत्व के साथ टकराव था। अगर यह टकराव आगे भी बना रहा तो श्रीलंका की शांति को नया खतरा हो सकता है। लेकिन जानकारों के मुताबिक यह स्थिति किसी सैन्य बगावत की तरफ जाएगी ऐसा नहीं लगता है। लेकिन राजपक्षे की छवि को देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि टकराव का खतरा अभी टला नहीं है। इसलिए सवाल महज चुनाव जीतने का ही नहीं है। सवाल लोकतंत्र का है, श्रीलंका के अस्तित्व और आगे की रणनीति, कूटनीति का है। गृहयुद्ध खत्म होने के बाद भी श्रीलंका सामान्य नहीं हुआ है। असली चुनौतियां अभी बाकी हैं। ऐसे में भारत सहित पूरी दुनिया की निगाहें श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति राजपक्षे पर लगी हैं।जहां तक भारत-श्रीलंका के संबंधों का सवाल है तो कुल मिलाकर अभी तक यह संबंध संतोषप्रद ही रहा है। लेकिन लिट्टे के खात्मे के लिए जिस प्रकार श्रीलंका ने चीन और पाकिस्तान की मदद ली वह भारत के हित में नहीं जाता। लिट्टे के खिलाफ अभियान के दौरान चीन और पाकिस्तान की सैन्य भूमिका श्रीलंका में बढ़ी है। जो भारत के लिए चिंता का विषय है। श्रीलंका में होने वाले परिवर्तनों का भारत पर भी असर पड़ता है। गृहयुद्ध के कारण चरमराई श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए व्यापार के मामले में भारत को श्रीलंका के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने होंगे। श्रीलंका अभी भी भारत पर काफी कुछ निर्भर करता है। ऐसे में उसे आर्थिक और राजनैतिक पहल के माध्यम से प्रभावित किया जा सकता है।
Friday, February 12, 2010
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